श्री गांधी बावनी | Shree Gandhi Baavani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५. गांघी-चावनी दांदी-करूच १ बादल के नाहिं, देश-भक्तन के दल, घन- गन न हक. रण-दूरन सुनाओी है; सुनहरी संध्या के यह, सुरंगी सिंगर नोहिं, देश-सेविका की साड़ी, केसरी सुहाशी है; शिद्ध-धनु नाहिं, ये अुडायों है प्रिरंगी ध्वज, मोर-घुनि नाहिं, “वंदेमातरम” गाजी है; भारत में भयो, ऋत॒॒पावस को रंग नह, मोहन गांधीने कूच, दांडी पे छगाओ है--१५ दॉडी-कूच २ थंके बहादूर चे, डके की छगाय चोट, झंडे झूमशूम | फरहर! फ़रकत है; देख देख शेखन की, रोखी सिस गभी सथ, सारी शाहनखादी का, सीना धरते दै; जाफोनार्दिजोट भेसी, भ्टिंसा की चोट हु से, जाठीमों के केते केठे, कोट करकत है; छोटी दांडी-कूच की छोटी-सी चिनगारी में से, गो0ि पतश्चाहत की, दोर म्गटतत ६.१६




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