मोक्षमार्ग प्रकाशक की किरणें | Moksha Marg Prakask Ki Kiranen
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
449
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निवेदन
श्रीमान् पंडित प्रवर श्री टोडरमल्न जी ने मोक्षमाग प्रकाशक
न्थ की रचना की है । उसका सातवाँ अधिकार अत्यन्त उपयोगी है
क्योकि वस्तुस्वरूप जैन धर्यं है; तथापि उसके अनुयाय उसे कुलधर्म
मान बैठते हैं और स्वयं चस्तुस्वंरूप घर्म के अनुयायी हैं--ऐसां मानकर
श्रद्धा,ज्ञान, चारित्र, तप, स्वाध्याय, प्रत्याख्यान; पुरय, नव तत्त्व; अनुम्रक्षा;
निश्चय और व्यवहारादि में कैसी गम्भीर भूलें करते हे--उसका
सातवें अधिकार में अत्यन्त सुन्दर निरूपण किया गया ह 1 इस श्रधिकरार
पर पूञ्यं श्री कानजी स्वामी न अपनी अच्यन्त रुचक शेली स
विशद रीति से बीर सं० २४७६ में प्रवचन किये थे श्रोर वे सोनगढ़ से
प्रकाशित होन वाली श्री सदगुरु प्रवचन प्रसाद” नामक दस्तलिखित
(गुजराती) दैनिक पत्रिका में क्रमशः दिये जा चुके हैं उन्दीं को संचित
करके यद् पुस्तक प्रकाशित की गई दै |
सोक्षमार्ग प्रकाशक के प्रथम छह अधिकारों के प्रब चनों का संक्षिप्त
सार “'मोक्षमाग प्रकाशक की किरणें” ( भाग-१ ) के रूप सें श्री जैन
स्वाध्याय मंदिर टृस्ट की योर से वीर सं० ४४६ सें प्रकाशित हो चुका
है, और दूसरा भाग आपके हाथ में है । पूज्य गुरुदेव के श्रीमुख से प्रगट
हुई इन किरणों द्यरा मोक्ष का मागे सदैव प्रकाशसान रहै |
श्माचाये कल्प श्री टोडरमलजी साहव का महान उपकार है 9
जिन्दोंने इतनी सरलता से उन सब बातों को बहुत ही उन्दर ढंग से
स्पष्ट किया है कि जो मोक्षमागं के साधक जीव की साधना फे सार्स से
'मटक जाने के स्थान श्राति द् जिससे कि साधक क्रीं शीन अरक्र कर्
यथाथ सागं मे लग जाघे।
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