साहित्यस्रष्टा श्री विद्याधर शास्त्री | Sahityasrashta Shri Vidyadhar Shastri

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Sahityasrashta Shri Vidyadhar Shastri  by सत्यव्रत शास्त्री - Satyavrat Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तुति इस शताब्दी में संस्कृत भाषा के प्राचीन वाइमय की प्रायः सभी विधाओओं के समीक्षात्मक श्रघ्ययम तथा प्रकादान की दिशा में किये गये प्रयास स्तुस्प हैं। साथ ही यह भी हर का विपय है कि इसके प्रभिनव सृजन में साहित्य की सभी विधायों में पर्याप्त रचनारयें हो रही है । इस नवीन रचना का व्यं तथा दिल्प प्राचीन श्रौर नवीन रचना प्रकरणों से सयु- क्त है। इस शताब्दी पे रचित संस्कृत साहित्य का विपुल वाइ मय भारतीय जीवन मूल्यों को युगानुरूप परिवेश में प्रस्तुत करते हुए श्रपनी भाषा के जीवन्त रूप को प्रमाणित कर रहा है। यह बहुद्मायामी सृजन मात्रा प्रौर मुसाह्मकता दोनों ही इृष्टियों से महत्वपूर्ण होने के कारण भ्रब अपने सम्यक्‌ मूल्याकंन की श्रपेक्षा रखता है । स्व० श्री विद्याघरजी शास्त्री इस युग के सूर्घत्य संस्कृत मनीपी तथा महान साहित्य-सजंक थे । श्रापकी मनीपा प्राचीन श्रौर नवीन दोनों ही चिन्तन घारायो से समान रूप से सम्पृक्त थौ प्रतः प्रापने सस्त भाषा की जीवन्तता को रूपायित करने के लिये झपनो समग्र संसृति कै व्यं व शिल्प का ग्रधिकांश स्वरूप श्रमिनव ही रखा । शास्त्रीनी ने भ्रपने जोवन में छ दशकों से भी श्रघिक समय तक साहित्य की प्रायः सभी विधायों में बहुसश्पा में जो रचनायें की वे विविधत्ता तथा गुणवत्ता दोनो हो इष्टियों से श्रति मूल्यवान हूँ 1 भ्रालोच्य रचनाकार के दो महाकाव्य “हरनामायृतमू” तथा *पविश्वम'नवीयमू” अभिनव साहित्य की विशिष्ट झौर प्रतिनिधि रचनायें हैं । “हरनामायृतमू” में एक सात्विक मनीपी के जीवन-वृत्त को बढ़े ही प्रभावोत्पादक ढंग से कवि ने उभारा ब चित्रित किया है। नायक के जीवन की घटनाभ्रोके माध्यम से देश को तत्कालीन सामाजिक तथा




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