संस्कृत - काव्य - तरंगिणी | Sanskrit Kavya - Terdigni

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Sanskrit Kavya - Terdigni by सत्यव्रत शास्त्री - Satyavrat Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्धां ओपधि-विज्ञान आयुर्वेद राज-क्तव्य आदि अनेक धर्मेतर विषयों से था । ऐसे मंत्रों को अथर्व॑व्रद नामक चौथे वेद के रूप में संगह्दीत किया गया। विभाजन होते हुए भी अनेक ऐसे मंत्र हैं जो दो या दो से अधिक वेदों मे सामान्य हैं । सामवेद में 15 मंत्रों को छोड़कर शेष सब मंत्र ऋग्वेद के ही हैं । अथनंतेद में भी उन्नीसवाँ और बीसवाँ काड ऋग्वेद के मंत्रों का ही संकलन है । यजुवेंद में मंत्र प्राय गद्य में हैं । अत्त कऋग्वेद और अथवंवेद दो ही ऐसे वेद हैं जो काव्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । ऋग्वेद दस मंडलों में विभकत है । प्रत्येक मंडल में अनेक सुंक्त हैं और प्रत्येक सूकत मे अनेक मंत्र । ऋषगवेद में कुल मिलाकर 1028 सूक्त है और 10580 मंत्र । प्रथम और दशम मंडल को भाषा की दृष्टि से भर्नाचीन माना जाता है। इनमें अनेक ऋषियों के सूबतों का संग्रह है । दूसरे से लेकर सातवें मण्डल तक प्रत्येक मण्डल में एक ही ऋषि या एक ही वंश के ऋषियों के सूक्त संगृहीत किए गए है इसलिये ने बंश मंडलों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन मंडलों के ऋषि क्रमश गृत्समद विश्वामित्न वामदेव अन्रि भरद्वाज और वसिष्ठ हैं। आठवें मंडल में अनेक ऋषियों के सूक्त हैं परन्तु कण्व वंश के ऋषियों की प्रधानता है । नवम मंडल की विद्ेषता यह है कि इसमें सभी सुक्‍्त सोम देवता से संबंधित हैं। कऋगवेद सें अस्ति वरुण रुद्र विष्णु पर्जन्य उपस्‌ आदि अनेक देवताओं की स्तृति के सूकत हूँ । सूक्ती की दुष्टि से इन्द्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण देवता हैं परन्तु प्रत्येक मंडल में अग्नि के सूक्त सबसे पुर्वे रखे गए हैं । क्रग्वेद में कंतिपय सुक्त ऐसे भी हैं जो भौतिक अथवा आध्यात्मिक विचारधारा से सम्बद्ध हैं । इनमें विशेष उल्लेखनीय है--मण्दूकसुक्त और अक्षसुक्त । भाषा और काव्य की दृष्टि से दूसरा महत्त्वपूर्ण वेद अथवंवेद है । इस वेद का नामकरण सम्भवत किसी ऋषि के नाम पर हुभ्रा हैं । इस वेद में संगद्दीत मंत्रों का संबंध यज्ञीय विधि-विधानों से बहुत ही कम है । बहुत से विद्वानों को इसके स्वतंत्र वेद होने में भी सन्देह है । अथवंवेद बीस कांडों में विभकत हैं । कांडों में सूक्त और सूवतों में मंत्रों का संनिवेदा है । कुल मिलाकर 731 सूक्त और 5849 मंत्र हैं। इस वेद का अस्सी प्रतिदयात से भी अधिक भाग कविता में है। प्रारंभ के 13 कॉंडों में प्रार्थनाएँ ज्ञान विद्यावृद्धि एवं रक्षा भादि के मंत्र हैं । 14वें कॉंड में विवाह से संबंधित मंत्रों का संग्रह है । अठारहुबें कांड में श्राद्ध आदि से संबंधित मंत्र है । बीसवें कांड में सोमयाग का विस्तृत वर्णन किया गया है । पाइसात्य एवं कूछ आधुनिक भारतीय विद्वानों की धारणा है कि अथवंवेद में ज.दू-टोना अभिषार मारण मोहन तथा उच्चाटन आदि की विधियों का




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