महा वंश | Maha Vansh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नाम लाक है | यद लाक कोनसा जनपद हे ? शी देयदर का कहना है,
कि यदि महावश की कथा में कुछ भी इतिहाम स्वीकृत करना हो पड़े तो हमें
लाख को बज का ही एक प्रदेश राढ़ स्वीकृत करना होगा । श्र महावशा में
जिन बन्दरगाहो के नाम झाए हैं उन्हें कहीं न कहों बहाल की खाड़ी में ही
दृढना होगा, श्ररत समुद्र के तट पर तो किसी को भी नहीं ।
यह तक बिल्कुल निस्सार है। मदकच्छ (मडोच, ग्रौर सुप्पारक (सोपारा)
स्पष्ट तौर पर गुजरात (प्राचीनलाट) के बन्दर हैं । लाठ देश को विद्वानों ने
लार रगुनरात प्रदेश स्वीकृत किया है। लेकिन श्री ऐयडर की श्राशा है
कि दानों को केवल इस लिए श्रस्त्रीकार करना होगा क्योकि यह कालिङ्ग के
किमी प्रदेश को वच्च श्रौर उसके पड़ोसी राढ देश को लाठ बनाने के विचार
का समथन नहीं करते । वच्ज के पड़ोस में लाठ ढूंदने की बजाए लात
के पड़ोस में हो वद्ज क्यों न ढूंदा जाए? श्र मदाबंरा में लाठ के
बह के पड्टोर में होने की कोई चात नहीं हे । वज्ञ राजकन्या चू कि लात
गई इस जिये वह पहास में हो रहा दोगा, यह काई तक नहीं । जातकों
की कथधाश' से साफ मालूम होता है, कि वशिक-साथ उस वक्त दूर दूर तक
घूमा करते थे |
मदावश में जितनी भीं घटनाश्रों का समय दिया गया है उन सब की
मिनी बुद्ध के परिनिर्वाणसेहीक) गहि | विजय का लङ्का-ग्रागमन बुद्ध के
परिनिवाण के दिन माना ही जाता दै। बुद्ध का परिनिवाण कव हूश्रा!
सिंइल, स्पाम, बर्मा को परमारा के श्रतु नर बुद्ध का परिनिर्वाण ५४४ ई० पू०
में हुश्रा । क्या यद ठीक हे ?
अशोक का राजउयाभिषेक बुद्ध के परिनिर्वाणु के २१८ वर्ष बाद बताया जाता
है श्रोर ।लखा है कि यह राज्यामिषेक इस समय हुआ जब शशंक चार बधं
तकर, उ करचुशाथा | इस रििसिबं से अ्रशाक का राञ्यारम्म बुद्ध परिनि+
बाण के २१४ वषंव्राद हुश्रा। बिन्दुस्ार ने रद वषं राज्य किया । चन्द्रगुप्त
ने २४ वर्ष । दोनों के राज्य काल को जोड़ कर २१४ में से घटाने से चन्द्रगुपत
का राज्यारम्भ बुदद-ारिनिर्वाण कै १६२ वधं बाद निश्चित होता हे । भारतवर्ष
के प्राचोन इतिहास में जे! थाड़ी सी निश्चित तिथिया हैं, उनमें एक दे चन्द्र गुप्त
के राज्य की लिपि । लिफकम्दर के न्राकमखक्री रिथि निशिक्तत है, उसी के
झाधार पर सन्द्रगुप्त का राज्य देर? ई० पुर में माना लाता है। ३९१ ई०
पू० + १९२ वर्ष = परे दे० पुन यें बुद का परिनिदाल दुआ. । बुद्ध
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