रत्नकरण्ड श्रावकाचार | Ratnakarand Shravakachar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ratnakarand Shravakachar by पंडित पन्नालाल जैन - Pandit Pannalal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

Add Infomation AboutPt. Pannalal Jain Sahityachary

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम परिच्डेद । ६ धर्म का स्वरूप सद्र थिज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः । यदीयप्रस्यनी कानि भवन्ति भवपद्धतिः ॥ झन्वयाध्थ--(घर्मेश्वरा:) घंम के ईशपर-जिनेन्द्र भगवान, (सद्दुष्टि-श्ञानजृत्तानि) सम्यग्दशन, सम्यग्हान श्रोर सम्य- क्चारित्र को (धर्मम्‌) धर्म विदुः) कहते हैं । (यदौयप्रत्यनी कानि) जिनके उ तर मिथ्याद्शन, मिथ्याज्ञान शोर मिथ्याचारित्र को अघम कहते हैं और ये (भवपद्धतिः) संखार के मागे (भवन्ति) होते हैं । कठिन शब्द मे --सम्धग्दंशन-टमच्चे देव, शाख भौर गुरू का भद्धान करना । सम्परशन--जो सम्यग्दशन सदित हो थर पदार्थ को ्ग्योःका र्यो जाने + सम्बक्वारित्रन्न्सतार के कार रूप पांचों पापों का त्याग करना : भावाधे--सम्पर्दशीन, सम्यग्शान शोर सम्यक्चारित्र घम कहलाते हैं। ये तीनों पक साथ मिलकर मोल के मार्ग हैं । इनसे उजटे मिथ्याद्शन श्रादि अधर्म करलाते है भौरये संसार के माग ह ॥३॥ सम्यग्दरेनं का लक्षण शद्धान परमार्थानामाक्तागमतपोभृताम्‌ । ्रि्ापोढमषटीग सम्यग शेनमस्मयम्‌ ॥४॥ श्न्वयाथ--(षरमार्थानाम्‌) स्वे (भाप्तागमतपोभृताम्‌) देव, शास्त्र भौर गुरुभं का (व्रिमूढापोढम्‌) तीन मूटता रदित, (भङ्गम्‌) आठ शङ्क सहित शोर (अस्मयम्‌) मद रहित




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now