रत्नकरण्ड श्रावकाचार | Ratnakarand Shravakachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम परिच्डेद । ६
धर्म का स्वरूप
सद्र थिज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः ।
यदीयप्रस्यनी कानि भवन्ति भवपद्धतिः ॥
झन्वयाध्थ--(घर्मेश्वरा:) घंम के ईशपर-जिनेन्द्र भगवान,
(सद्दुष्टि-श्ञानजृत्तानि) सम्यग्दशन, सम्यग्हान श्रोर सम्य-
क्चारित्र को (धर्मम्) धर्म विदुः) कहते हैं । (यदौयप्रत्यनी
कानि) जिनके उ तर मिथ्याद्शन, मिथ्याज्ञान शोर मिथ्याचारित्र
को अघम कहते हैं और ये (भवपद्धतिः) संखार के मागे
(भवन्ति) होते हैं ।
कठिन शब्द मे --सम्धग्दंशन-टमच्चे देव, शाख भौर गुरू का भद्धान
करना । सम्परशन--जो सम्यग्दशन सदित हो थर पदार्थ को ्ग्योःका र्यो
जाने + सम्बक्वारित्रन्न्सतार के कार रूप पांचों पापों का त्याग करना :
भावाधे--सम्पर्दशीन, सम्यग्शान शोर सम्यक्चारित्र घम
कहलाते हैं। ये तीनों पक साथ मिलकर मोल के मार्ग हैं ।
इनसे उजटे मिथ्याद्शन श्रादि अधर्म करलाते है भौरये
संसार के माग ह ॥३॥
सम्यग्दरेनं का लक्षण
शद्धान परमार्थानामाक्तागमतपोभृताम् ।
्रि्ापोढमषटीग सम्यग शेनमस्मयम् ॥४॥
श्न्वयाथ--(षरमार्थानाम्) स्वे (भाप्तागमतपोभृताम्)
देव, शास्त्र भौर गुरुभं का (व्रिमूढापोढम्) तीन मूटता रदित,
(भङ्गम्) आठ शङ्क सहित शोर (अस्मयम्) मद रहित
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