तत्त्व चर्चा | Tatv-charcha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ “आत्मा का पतन होता है तो यह शिक्षा कितनी प्रभावकारी हो सकती दे भारत सरकार कहती है--अन्न के वनाव के स्यि उपवास -करो। मैं कहूँगा--आत्मगुद्धि के छिपे उपबास करो--यदि यों प्रचार 'किया जाये तो अन स्वयं वच जायेगा-यह तो गौण साष्य है । प्रत्येक कार्य का लक्ष्य अध्यात्मवाद रहना चाहिये । छात्रों से पूछा जाता है-अध्ययन क्यें। करते हो १ वे कहेंगे-आजी- बिका के छिये। शायद ही कोई कहे--आत्मझुद्धि के लिये, ज्ञानाजन “के छिये | मेरा दृष्टिकोण देता है कि आज छक्यम जो विकृति समा गई है, उसके निवारणार्थ परिवर्तन लाया जाये तो उससे केवल भारत का ही, नहीं वत्कि समूचे विश्व का बड़ा छाभ हो सकता है । आज बिगाड़ का मूठ कारण यही है कि छोगों का छक्ष्य भौतिक -वादी बन रहा है । फिर आप वैज्ञानिक छोग भी उसमें सहायक -हो जाते हैं । आज छोग (धरम) सिद्धान्तों के बजाय साइन्स को - अधिक मानते हैं । रामाराव--(मुस्कराहट के साथ) वस्तुस्थिति यही है । आचाये श्री--आपने जो प्रश्न किये वे गढ़ हैं, वे अन्य छोगों (श्रोताओं) के ठिए भी छाभ-जनक हैं .। रामाराव--मेरी यह धारणा थी कि झुम कम सर्वेदा व सर्वथा 'ऊँचा ढे जाने वाले ही हैं, किन्तु आंज मैंने 'झुभ कर्म भी बन्धन दै ¢ यह. नई वातं समन्नी-- जीर सुत्ने यह खीक जची ।




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