गीता चिन्तन | Geeta Chintan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.91 MB
कुल पष्ठ :
478
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घटक पढ़े हुए भावों पर बारम्बार मनव व चिस्तन
करते का भी स्वभाव बना ले ।
प्रियवर ! जीवन में प्रापने ध्रनेकों को धज़माया
होगा; घाजमाये हुए को पुन: पु: ध्ाजमाने में भी
शायद श्राप पीछे,नह्दीं हे होंगे ! परम्तु-क्या स्थायो
शान्ति,मिली ? कया श्रापका जोवन श्रापके लिये सुख-
प्रद एवं निष्कण्टक बन गया ? शायद नहीं '! तो
धाइये; प्रस्तुत ग्रत्थ को भ्रपंना जोवन पएथ-प्रदर्शक मान
कर ,इंसमें वरशित श्रत्यन्त कल्याणकारी एवं जीवन में
नवीन वंद्वार व निंखारे लाने वाले सदी की * भी एक
बार, झाज़मा, कर द्रेखिये श्र्थातू . भग्रवाव जो के
ध्नमोल कथन के श्रमुरूप भी शपना जीवन बना कर
देखिये । सौगन्घ भगवादुूजीके युगल चरणोकी ! श्वापकें
जीवनें में ज्नानत्दकी नई लहर भरा जायेगो श्रौर शापका
रोम-रोम 'वेन्दा' थोगुरंदेवंजी' के इन श्रनंमोल शब्दोको
सस्ती में भेर.कर गुनगुनाने लग जायेगा--
गीता की घाखी से-दो ज्ञाच मिल गया ।
_ खुशी-खुशी जीनेका सामान मिल गया ॥
प्रमु जी को वासी ने हंसना सिखाया,
' दुखों.. घर - फों को. दूर भमाया ।
-सुश्कराते रहने का फ़रसान' मिल गया;
छुधियों हे भरा इक जटाब सिख घया ॥
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