पूर्ण स्वतंत्रता की राह | Puran Swatantrata Ki Rah

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Puran Swatantrata Ki Rah by मुनि सुशील -Muni Susheel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ण स्वतंत्रता की रा ७ ओर दुःख की एक माया सी पटी हई है। सुख फे पश्चात्‌ दुःख भौर दु ख के पश्चात खुख--यह चक्र निरन्तर घूसता ही रहता है 1 सुख और दुःख को अनुभव विशोषरूप से मनुष्य के हृदय- निर्माण पर निभैर करता है] दुःख मे मचुष्य यदि स्टीरूपसे सोचे तो चिरोप ज्ञोन प्राप्त कर लेती है। किसी कि ने कहा भी है-- दुख है ज्ञान की खान.... मानव ! शान्त दुद्धि सर्‌ द्र भावना के आधार पर दुःख से नई २ शिक्षाए' मिलती है और यहा तक कि वे शिक्षाए इतनी अमि रूप से अकित हो जाती है कि भावी जीवन कै विकास हित वे चरदान रूप सिद्ध होती है। अधिकॉशत' सुख भौर दुःख की अनुभूतियां चित्त के विशिष्ट मनोभावों के कारण ही होती हे । एक गरीव यह सोच कर मनमे दुःखी होने खगा करि उसका चच्चा मिठाई के लिये रो रहा है, परन्तु उसके पास उतने पैसे नदी है। हलवाइयों कै यहां पचासो तरह की स्वादिए से स्वादिष्ट मिराघर्या रखी है और पैसे घाले खूब खरीदते है एवं मजे उड़ाते है, किन्तु उसका चच्चां एक पेड़े के लिये भी तरस रहा है। चद्द दु खी होता है और एक पैसे की गाजर खरीद कर वच्चे को खिदाना चाहता दै । घट गाजर के छिलके उतार कर एकता है, उसी समय एक भिखमंगी आकर वे छिलके अपने वच्चे को खिलाने लगती है। उस समय उस गरीच की




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