पीढीयाँ | Peedhiya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
401
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जवाव दूंगा 1“
“मामू साहव, मुझे मालूम हुआ है कि गाननीय वी ० पौ० वर्मा साहव बहुत
हीं गरीब घानदान के थे, इसलिए इन्होंने आपके यहां परवरिश पाई ।”
“इसका वालिद खचेड, कोम का तेली था। हमारी गली में म्युनेस्पेल्टी के
लैम्पों में वही मिट्टी का तेल भरता और चिमनियां वगैरह साफ करके जलाता
था।“
“माफ कीजिए, अफपका खानदान तो वहुत ऊंचा था फिर इनकी पहुच आपके
यहां कैसे हो गई ।”
“मई ये मेरे साथ स्कूल मे पाचवें दर्जे से वरावर साथ-साथ पढ़ा हैं। शुरू से
ही बेहद जहीन भौर हर संब्जेवट में हमेशा फरस्ट आता था । डिवेट में भी अच्छा
बोलने वाला लड़का यही बी ० पी ० यथा । वस दोस्ती हो गई ।”
आपके बड़े बुजुर्गों को इस दोस्ती पर एत राज़ तो नही हुआ!”
“ठीक पूछा । उस ज़माने मे इस बात का बहुत ख्याल रखा जाता था और
मेरे वालिद को हमारो दोस्ती पर कुछ ऑब्जेक्शन भी थे । मगर एक तो मेरा रख
देखकर और दूसरे इसके बाभदव और सतीकेदार होने की वजह से उन्होंने वाद में
खामोशी इस्तियार कर ली थी ।”
“इन्होंने आपके यहा से कभी कोई चीज़ चोरी-वोरी, मेरा मतलब है वर्गर
पूधै आपके यहा से कोई चीज वगैरह ”
“नही.-नही भाई, बी० पी० उस जमाने में बेहद आनेस्ट आदमी था । हेम
लोगों को पढ़ने का शौक यूबे था, बहसें भी करते थे और तुम्हारे जन्नतमकाती
नाना साहुव वावू कौशलकिशोर खन्नाजी के साय अकसर वहसे किया कसते । हम
दोनो ही नेष्नलिस्ट व्यूजके थे ।”
जावेद तरी-ताजा होकर नये वु्ते-पजामे मे आ पहुंचा । युधिष्ठिर फो रेकाडिग
करते देखकर बोला « “सॉरी, मैंने डिस्टबं किया ।” युधिप्ठिर ने रिकार्ड का बटन
बन्द किया । सेव का एक टुकडा प्लेट से उठाते हुए मुश्ताक साहव ने एकाएक
परा : ममर यै भाज एकाएक भरू की बात तुम लोगो के दिमागमे कैसे मा गई;
क्या उसके मूतल्तिक कोई नई खवर अनिवाली है ।
उत्तर मे युधिष्ठिर ने जगदम्बा देढी भौर आलमनगर की मजार के सम्बन्ध
में सारी कथा सुना डाली । उसने मिया मूरद्दीन का रिकॉर्ड किया हुआ बयान भी
सुनवाया : “अब आपने मुझ गरीब और हकीर इन्सान को इतनी इज्जत ब्णी है
हुजूर, इतनी खातिरदारी की और अब पचास रुपये भी इनायत फरमा रहे हैं, मैं
झूठ नहीं बोलूगा भाषसे । खुदा को मुह दिखलाना है । वह “अहवाले जियारत पीर
बसरा' पुरानी किताब नही ! वी० पी० वर्मा साहव के दरवार मे एक दिन बेठा
था। मुमशेर कौ हवेली का तडक्रिय छिड़ गया । मुसम्मात जगदम्बा ओर उनके
पीडां : 11
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