कहानी : नई पुरानी | Kahani Nai Purani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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डालता हे । प्रसाद जी द्वारा लिखित शुराः कहानी का यह उदाहरण देखिए-
“वह पचास वष्धे से उपरथा। तव मी युवकों से अधिक
बलिष्ट और दृढ़ था । चमड़े पर सुर्रियाँ नहीं पढ़ी थीं । वर्षा की
कड़ी में, पूस की रातों की छाया में, कढ़कती हुई जेठ की धूप में
नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था । उसकी चढ़ी मूँ छे विच्छ
के उंक की तरह देखने वालों की आँखों मे चभती थीं । उसका
सांवला रंग साँप की तरह चिकना आर चसकीला था । उसकी
नागपुरो 'घोती का लाल रेशमी किनारा दूर से भी ध्यान आकर्षित
करता । कमर में बनारसी सेर्है का फेंटा, जिसमें सीप के मूठ का
विद्रा खुसा रहता था । उसके षुँ घराले बालों पर सुनहले पर्ल
के साफे का छोर, उसकी चौड़ी पीठ पर फेला रहता । ऊचे कन्थे
पर टिका हुआ चोड़ी घार का गँडासा, यह थी उसकी धज !
पञ्जां के बल पर जव वह चलता तो उसकी नसें चटाचट बोलती
थीं । वह रुर्डा था ।””
संकेत -चरित्र-चित्रण की उक्त विवरणात्मक प्रणाली की श्रपे्ता श्राजकल
संकेतास्मक प्रणाली को श्रधिक उपयुक्त श्ौर कलात्मक समझा जाता है ।
पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का उठ्लेख करने में यह संकेतात्मक प्रणाली
अवश्य ही श्रधिक उपयुक्त होती हैं, क्योंकि इनका अनुसरण करके लेखक
चरित्र-चित्रण के सम्पूण परिणाम से श्रवगत होने का सारा उत्तरदायित्व
पाठक पर ही छोड़ देता है । वह स्वय तो केवल पातों की चारित्रिक
प्रदृत्तियों का ही उल्लेख करके सतोष कर लेता हें । इस प्रणाली का एक
सुन्दर उदाहरण यह है--
“वह अभी-रमी जरे थे और पे-पर-पें जम्हाइयां लेते हुए
पूरी सरह सचेत होने के लिए समाचार-पत्र और प्याल्ली-भर चाय
का इन्तज्ञार कर रहे थे । सूस क्षितिज कीं ओट में से उभर आया
था श्रौर उसकी सुनहली रश्मियां मोर-पंख की तरह आकाश पर
व्रिखर रहो थी, पूवं की झोर की तमाम खिड़ कियाँ सोने की तरह
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