कहानी : नई पुरानी | Kahani Nai Purani

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Kahani Nai Purani by डॉ. रघुवीर सिंह - Dr Raghuveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{५ डालता हे । प्रसाद जी द्वारा लिखित शुराः कहानी का यह उदाहरण देखिए- “वह पचास वष्धे से उपरथा। तव मी युवकों से अधिक बलिष्ट और दृढ़ था । चमड़े पर सुर्रियाँ नहीं पढ़ी थीं । वर्षा की कड़ी में, पूस की रातों की छाया में, कढ़कती हुई जेठ की धूप में नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था । उसकी चढ़ी मूँ छे विच्छ के उंक की तरह देखने वालों की आँखों मे चभती थीं । उसका सांवला रंग साँप की तरह चिकना आर चसकीला था । उसकी नागपुरो 'घोती का लाल रेशमी किनारा दूर से भी ध्यान आकर्षित करता । कमर में बनारसी सेर्है का फेंटा, जिसमें सीप के मूठ का विद्रा खुसा रहता था । उसके षुँ घराले बालों पर सुनहले पर्ल के साफे का छोर, उसकी चौड़ी पीठ पर फेला रहता । ऊचे कन्थे पर टिका हुआ चोड़ी घार का गँडासा, यह थी उसकी धज ! पञ्जां के बल पर जव वह चलता तो उसकी नसें चटाचट बोलती थीं । वह रुर्डा था ।”” संकेत -चरित्र-चित्रण की उक्त विवरणात्मक प्रणाली की श्रपे्ता श्राजकल संकेतास्मक प्रणाली को श्रधिक उपयुक्त श्ौर कलात्मक समझा जाता है । पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का उठ्लेख करने में यह संकेतात्मक प्रणाली अवश्य ही श्रधिक उपयुक्त होती हैं, क्योंकि इनका अनुसरण करके लेखक चरित्र-चित्रण के सम्पूण परिणाम से श्रवगत होने का सारा उत्तरदायित्व पाठक पर ही छोड़ देता है । वह स्वय तो केवल पातों की चारित्रिक प्रदृत्तियों का ही उल्लेख करके सतोष कर लेता हें । इस प्रणाली का एक सुन्दर उदाहरण यह है-- “वह अभी-रमी जरे थे और पे-पर-पें जम्हाइयां लेते हुए पूरी सरह सचेत होने के लिए समाचार-पत्र और प्याल्ली-भर चाय का इन्तज्ञार कर रहे थे । सूस क्षितिज कीं ओट में से उभर आया था श्रौर उसकी सुनहली रश्मियां मोर-पंख की तरह आकाश पर व्रिखर रहो थी, पूवं की झोर की तमाम खिड़ कियाँ सोने की तरह




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