इतिहास की अमर बैल ओसवाल | Itihas Ki Amar Bail Oswal

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Itihas Ki Amar Bail Oswal by डॉ. रघुवीर सिंह - Dr Raghuveer Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका अत्यन्त प्राचीन ओर देश-विख्यात ओसवाल समाज का इतिहास अभीदे कहाँ ? वह तैयार हो रहा है । उसकी एक प्रस्तुति इस ग्रंथ में है । इसीलिए लेखक ने प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर दिया है कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना ओर सापेक्षिक सांस्कृतिक परिवेश व्याख्यायित करना लेखन का अंग है । लेखक ने अपना यथार्थ स्वरूप पहचानने की प्रक्रिया में इतिहास को जोने का प्रयास किया है| वैसे हम सब वर्तमान इतिहास को जीना चाहते हैं । हमारी जिजीविषा में तालमेल विठाने वाला दशंन प्राग्‌ ऐतिहासिक काल में ऋषभदेव ने दिया, जो जैनों के प्रथम तीर्थकर हँ । संस्कृति के चार-अघ्याय' मेँ श्री रामधारी सिह दिनकर ते लिखा हैं कि---/ “ऋषभदेव का उल्लेख ऋग्वेद में हैं | विष्णु पुराण और भागवत्‌ का भी कहना ह किं दशावतार कै पूर्वं होने वाके अवतारो में से एक अवतार ऋषमदेव हैं। उनकी परम्परा में जो लोग अहिसा तथा तपश्चर्या के मार्ग पर बढ़ते रहे, उन्हीं ने जैन धर्म का पथ प्रशस्त किया । ऋषभदेव मूलतः समाज-वैज्ञानिक थे । उन्होंने हिमालय से हिन्द महासागर तक फैले इस विस्तृत भूभाग में रहने वाली जनता की भाषा-भूषा, रुचि-शुंचि का अध्ययन किया और सबके जीवन को निरापद रखने के लिए तीन बातें सिखायीं : (१) असि (शस्त्र) (२) मसि (शास्त्र) (३) कृषि । हर स्त्री-पुरुष से अपेक्षा रखी कि वह्‌ उपार्जन मे हिस्सा लेने के साथ-साथ शस्त्र-शास्त्र में पारंगत बने । ऋषभदेव के पुत्र भरत ने इस देश को संगठित किया और भारतवर्ष नाम दिया । उसके बाद असि-संचालन में प्रवोणता-प्राप्त छोग क्षत्रिय वन बैठे । मसि पर आधारित वर्ग ब्राह्मण कहलाने रूमा | क्रृषि में लगने वाले वैद्य हो गये । सब अरूग- कबीलों के रूप में कार्य करने लगे । कार्य-विभाजन के अनुरूप उनकी पहचान के लिए भनु ने जाति सूचक नामं रखे । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । समय के साथ इन चारों जातियों की इतनी उपजातियाँ हो गयीं कि भारतवर्ष जातियों का “अजायत धर वन -.. गया। इतिहासकार स्मिथ के अनुसार “अलूग-अलग जातियाँ होते हुए भी भारत में क : मौलिक एकता रही, उससे रंग, भाषा, वेष-भूषा और पूजोपासना का अतिक्रमण रहा 12 - . दस हजार वषं पूर्व इस भूमण्डल पर रहने वालों की संख्या लगभग तोन करोड़ जनसंख्या बढ़ोतरी की दर ०.१ प्रतिशत थी । जीविकोपार्जन में स्पर्धा का मभाव




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