जीवन कण | Jiwan Kan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
7 MB
कुल पृष्ठ :
188
श्रेणी :
Book Removed Due to DMCA
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बह प्रतीक्षा ६
सरसी उद्वेग भरी इत संस
बही उत वेगवतीं हु बयार |
हत॒ संचित-कर्म-निपात मयो
उतपात पुरातन को पततभार् |
उमये रस-राग-भरे सतमाव
मयो उत प्र्लव-पुज-उमार ।
हरिआवन की चस्वा इत त्यो
मधु-ऋआगम की कलकट-पुकार ।
वह आ रहा है | आरा रहा है |! आ रहा है !!! और बरसों
की, नहीं, नहीं, जीवन-भर की प्रतीक्षा का अत होगा । परंतु दस-
का आतिथ्य, उसके लिए भोजन, उसके त्िए निवास...... ... .
अवलोकिबो हे हरि के मग को
चलिबो बन में हरि-खोजन है ।
ग्रह-काज सदा हरि श्रास्तन हत
सरोजन ही कौ सेयोजन हे ।
हस्मिग के जोग सेजोवन कौ
फल-चाखिबो ही इक भोजन है ।
तन है हरिपॉयन पारिबे को
सवरी की न ओर परोजन हे ।
ओर उमके लिए उत्सुकता इतनी बढ़ी, विकत्षता इ५ हृद
तक पहुँच गईं कि उसे स्वेत्र उसी फा भ्रम होन लगा। इसी
कारणु--
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