नया मार्ग | Naya Marg
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यप्रकाश संगर - Satyaprakash Sangar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिकार ७
“क्या तुमने इसे स्वयं मारा है ?” स्वर में श्राइचर्य भरकर उन्होंने
फिर पूछा ।
“और नहीं तो किसने मारा, पिताजी, घोड़े को पेड़ से बाँवकर
में एक भाड़ी में छिप गया । उसी समय यह भागा उधर झा गया 1
मेंने लक्ष्य वाँघा श्रौर एकदम गोली दाग दी । पहली गोला से तो नहीं
गिरा, किन्तु दूसरी गोली खाकर तो वह हिल भी नहीं सका कुष्ठ
देर तड़पा श्रौर फिर ८ण्डा हो गया 1
“किन्तु बेटा, तुम्हें अकेले नहीं जाना चाहिए था । रहीम को भी
साथ ले गए होते ।”
“डर किस बात का था पिताजी ! में तो श्रकेला विलकुल नहीं
डरता ।”'
“तुम बड़े साहसी हो बेटा !”'
साहब का क्रोघ काफुर हो गया । बेटे की बड़ी सराहना करते
हुए उन्होंने फिर लीलावती को श्रावाज्ञ दी, श्रजी बाहर तो थ्राझों
ज़रा।'
जब वह भ्रा गहं तो वोले-
“देखो तो, बेटा कितना बड़ा शिकार मार लाया है ! इस खुशी में
कल एक बड़ी-सी पार्टी दी जायगी । रहीम, रासू से कह दे कि छोटे
साहब को चाय पिलाकर उनके स्नान का प्रबन्ध करे । श्रे सतीश,
ग्नो प्रमिला, बाहर प्रश्रो । देखो तुम्हारे भैया तुम्हारे लिए कितनी
अच्छी सौगात लाए हैं । श्ररेरामू, अ्रलमारीमें से मिठाई तो निकाल
ला}
वह् हषं से विह्ुल हो वच्चो रौर नौकरों में मिठाई बाँटने लगे,
जैसे हरीश ने विक्टोरिया करस जीत लिया हो । पहले वह क्रोघ से
पागल हो रहे थे श्रौर अब हुर्ष-विभोर से । कितने विपरीत भ्रौर परस्पर-
विरोधी थे ये दोनों परिवर्तन । जिसने पहले उनकी गुस्से से काँपती
प्रावाज़ सुनी थी उसके लिए उनका वह हुर्ष-विज्ञल स्वर एक असम्भव
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