नया मार्ग | Naya Marg

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Naya Marg by सत्यप्रकाश संगर - Satyaprakash Sangar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिकार ७ “क्या तुमने इसे स्वयं मारा है ?” स्वर में श्राइचर्य भरकर उन्होंने फिर पूछा । “और नहीं तो किसने मारा, पिताजी, घोड़े को पेड़ से बाँवकर में एक भाड़ी में छिप गया । उसी समय यह भागा उधर झा गया 1 मेंने लक्ष्य वाँघा श्रौर एकदम गोली दाग दी । पहली गोला से तो नहीं गिरा, किन्तु दूसरी गोली खाकर तो वह हिल भी नहीं सका कुष्ठ देर तड़पा श्रौर फिर ८ण्डा हो गया 1 “किन्तु बेटा, तुम्हें अकेले नहीं जाना चाहिए था । रहीम को भी साथ ले गए होते ।” “डर किस बात का था पिताजी ! में तो श्रकेला विलकुल नहीं डरता ।”' “तुम बड़े साहसी हो बेटा !”' साहब का क्रोघ काफुर हो गया । बेटे की बड़ी सराहना करते हुए उन्होंने फिर लीलावती को श्रावाज्ञ दी, श्रजी बाहर तो थ्राझों ज़रा।' जब वह भ्रा गहं तो वोले- “देखो तो, बेटा कितना बड़ा शिकार मार लाया है ! इस खुशी में कल एक बड़ी-सी पार्टी दी जायगी । रहीम, रासू से कह दे कि छोटे साहब को चाय पिलाकर उनके स्नान का प्रबन्ध करे । श्रे सतीश, ग्नो प्रमिला, बाहर प्रश्रो । देखो तुम्हारे भैया तुम्हारे लिए कितनी अच्छी सौगात लाए हैं । श्ररेरामू, अ्रलमारीमें से मिठाई तो निकाल ला} वह्‌ हषं से विह्ुल हो वच्चो रौर नौकरों में मिठाई बाँटने लगे, जैसे हरीश ने विक्टोरिया करस जीत लिया हो । पहले वह क्रोघ से पागल हो रहे थे श्रौर अब हुर्ष-विभोर से । कितने विपरीत भ्रौर परस्पर- विरोधी थे ये दोनों परिवर्तन । जिसने पहले उनकी गुस्से से काँपती प्रावाज़ सुनी थी उसके लिए उनका वह हुर्ष-विज्ञल स्वर एक असम्भव




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