हिन्दी शब्दसागर भाग - 5 | Hindi Shabdasagar Bhag - 5
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
72 MB
कुल पष्ठ :
598
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फाखता
२३०९,
फानूस
मामि मोमो
संशा पु० एक र ग का नाम । यह रंग ्टादरिप् भूरेरग
का होता हे । आठ मादे वायोलेट को आध सेर मजीठ के
काढ़े में मिलाकर इसे बनाते हैं ।
फासता-रसंज्ञा ० [ अ० ] [ वि० फारत ] पंडुक । धर्वेरग्वा ।
फाग-संघा पुं० [हिं० फागुन ] (१) फागुन के महीने में होनेवाला
उत्पव जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग या. गुलाल डालते
ओर वसंतच्तु फे गीत गाते हैं । उ०८--तेहि सिर फूल
दहि जेहि माथे मन भाग । जद सदा सुगंध वह जनु
वसंत ज फाग ।--जाययी ।
क्रि० प्र०--खेलना ।
(२) वह गीत जो फाग के उत्सव में गाया जाता है ।
फायुन-संशा पुं० [ सं० ] किशिर ऋतु का दूसरा महीना । माघ
के बाद का महीना । फाल्गुन ।
विदाध-- यद्यपि इम प्रष्टीने की गिनती पतञ्चङ या शिशिर
में हे, पर वसंत का आभास इसमें दिखाई देने लगता हैं ।
जैसे, नई पत्तियों निकलना आर भ होना, आमों म मंजरी
लगना, टेखू एूल्ना इत्यादि । इत महीने की पूर्णिमा को `
होलिका दहन होता है। यह जानंद् का महीनां साना
जाता है । इस महीने में जो गीत गाए जाते हैं उन्हें फाग
कहते हैं ।
फायुनी-विं० [ हिं« फाग़न ! फागुन संबंधी । फागुन का ।
फाजिल-वि० [ अ० फ़राजिल ] (१) अधिक । आवइयकता से
अधिक । ज़रूरत सं ज़्यादा । ख़च या काम से पचा हुआ ।
क्रि० ध्र०-निकटना ।-- निकालना ।--होना ।
(२) विद्वान् ।
फाटक्र-मंन्ञा पु० [ सं० कपाट ] (१) बढ़ा द्वार । बढ़ा दरवाज़ा ।
तोरण । उ०--चारों ओर तोंबे का कोट और पक्की
'बुआन चौड़ी खादर स्फटिक के चार फाटक तिनमें अ्टघाती
क्रितराड खग हषः ।--यूटु । (२) दरवाजे पर का
बेठक । (३) मवेकश्षीखाना । कांजी हौस ।
संज्ञा पुं० [ हिं० फटकना ] फटकन । पछोड़न । भूमी जो
अनाज फटकने मे बची हो । उ०--फाटक दे फर, हाटक .
मॉगत भरी निपटहि जानि ।--सूर ।
फारना-क्रि० अ० दु० “'फटना” । उ०--(क) धरती भार न
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अगव पात्र धरत उट षार । कूम हूर मुह फाटी तिन हस्तिन .
की चार ।--जायसी । (ख) दुध फाटि घृत दूधे मिला
नाद् जो मिला अकास। तन छूट मन तरह गया जहां धरी
मन आण ।-- कीर ।
फाड्राङ)-वि० [ ठि फाट्+खानः ] (१) फाड़ खानेवात्या ।
कटखन्ना । (२) ऋोर्धा । बिगढ़ल । चिड़चिढ़ा । (३)
भयानक । घातक ।
फाड़न-संश्ञा स्त्री० पु० [हिं० फाइना ] (१) काग़ज़, कपड़े आदि ;
९५.७८
का टुकड़ा जो फाड़ने से निकले । (२) दृष्टी के ताज़े मक्खन
की छोछ जो आग पर तपाने से निकले ।
फाड़ना-कि० स० [ सं० स्फाटन, हिं० फाटना ] (9 ) किमी पनी
या जुकीली चीज़ को किसी सतह पर इस प्रकार मारना
या खींचना कि सतह का कुछ भाग हट जाय या उपमं
दरार पढ़ जायें । चीरना । चिदीणे करना । जैस, नाखून
सा कपड़े फाइना, पेट फाइना । उ०--पेट फारि हरनाकुस
मारयो जय नरहरि भगवान ।--सूर ।
संया० क्रि०-डाल्ना ।--देना ।
मुहा०--फाढ़ खाना-क्राघ स झल्लाना । विगड़न। । चिड़चिड़ाना ।
(२) झटके से किसी परत होनेवाली वस्तु का कुछ भाग
अलग कर देना । टुकड़े करना । खंड करना । धनियां
उढ़ाना । जैसे, थान में से कपड़ा फाइना, कागज़ फाइना,
हवा का घादल फाइना ।
संयो० क्रि०--डालना ।--देना ।--छेना ।
(३) जुद्दी या मिली हुई वस्तुओं के मिले हुए किनारों को
अलग अव्यग कर देना । संधि या जोड़ फंलाकर खोलना ।
जप, आँख फाबना, मुँह फाइना । (४) किसी गादे द्रव
पदाध को इस प्रकार करना कि पानी ओर सार पदार्थ
भस्यग अलग हो जार्य । जन, (क) ग्वटाई डालकर कुर
फाडना । (ख) चोट पर लगने त फिटकरी खून फाद
देती हैं ।
फाणित-सशा ५० [ सण | (4) रव । (२) कीरा!
'_ फानिहा-मंघा पु० | अ० ] (१) प्रार्थना । उ०--कब्रीर काली
सुदरी होइ बैठी अल्लाह । पढ़ें फातहा मैव का हाजिर को
कहे नाहि ।--कर्यार । र ) वह चड़ावा जो पर हुए
लोगों के नाम पर दिया जाय । उ०--हलव्राई की दुकान
आर दादे का फातिहा।
फानना->० ^° | स० फरण | धुनना। रूद् को फटकना ।
{1० मण [ स० उपायन ]} किती काम को आरंभ करना।
अनुष्ठान करना । कोद काम हाथ में लेना । किसी काम में
हाथ लगा दना ।
फानसख-सना पुर [ फान ] (१) एक प्रकार का दीपाघार जिसके
चारां ओर महीन कपड़े या कागज़ का मंडप सा होता है ।
कपड़े या काग़ज़ से मढ़ा हुआ पिंजरे की झकल का
चिरागदोन । एक प्रकार की बढ़ं। कंदील ।
घिददाप--यह लकड़ी का एक चाकार वा अठपहल ढांचा
होता था जिस पर पतला कपड़ा मढ़ा रहता था । इसके
भीतर पहले चिरागदान पर चिराग रख कर लोग फरश्च
पर रखते थे । उ०--बाल छवीली तियन में बैठी आप
छिपाइ । अरगट ही फानूस सी परगट होति लखाइ !---
च्रिहारी ।
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