हिन्दी शब्दसागर भाग - 5 | Hindi Shabdasagar Bhag - 5

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Hindi Shabdasagar Bhag - 5  by श्यामसुन्दर दास - Shyamsundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फाखता २३०९, फानूस मामि मोमो संशा पु० एक र ग का नाम । यह रंग ्टादरिप्‌ भूरेरग का होता हे । आठ मादे वायोलेट को आध सेर मजीठ के काढ़े में मिलाकर इसे बनाते हैं । फासता-रसंज्ञा ० [ अ० ] [ वि० फारत ] पंडुक । धर्वेरग्वा । फाग-संघा पुं० [हिं० फागुन ] (१) फागुन के महीने में होनेवाला उत्पव जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग या. गुलाल डालते ओर वसंतच्तु फे गीत गाते हैं । उ०८--तेहि सिर फूल दहि जेहि माथे मन भाग । जद सदा सुगंध वह जनु वसंत ज फाग ।--जाययी । क्रि० प्र०--खेलना । (२) वह गीत जो फाग के उत्सव में गाया जाता है । फायुन-संशा पुं० [ सं० ] किशिर ऋतु का दूसरा महीना । माघ के बाद का महीना । फाल्गुन । विदाध-- यद्यपि इम प्रष्टीने की गिनती पतञ्चङ या शिशिर में हे, पर वसंत का आभास इसमें दिखाई देने लगता हैं । जैसे, नई पत्तियों निकलना आर भ होना, आमों म मंजरी लगना, टेखू एूल्ना इत्यादि । इत महीने की पूर्णिमा को ` होलिका दहन होता है। यह जानंद्‌ का महीनां साना जाता है । इस महीने में जो गीत गाए जाते हैं उन्हें फाग कहते हैं । फायुनी-विं० [ हिं« फाग़न ! फागुन संबंधी । फागुन का । फाजिल-वि० [ अ० फ़राजिल ] (१) अधिक । आवइयकता से अधिक । ज़रूरत सं ज़्यादा । ख़च या काम से पचा हुआ । क्रि० ध्र०-निकटना ।-- निकालना ।--होना । (२) विद्वान्‌ । फाटक्र-मंन्ञा पु० [ सं० कपाट ] (१) बढ़ा द्वार । बढ़ा दरवाज़ा । तोरण । उ०--चारों ओर तोंबे का कोट और पक्की 'बुआन चौड़ी खादर स्फटिक के चार फाटक तिनमें अ्टघाती क्रितराड खग हषः ।--यूटु । (२) दरवाजे पर का बेठक । (३) मवेकश्षीखाना । कांजी हौस । संज्ञा पुं० [ हिं० फटकना ] फटकन । पछोड़न । भूमी जो अनाज फटकने मे बची हो । उ०--फाटक दे फर, हाटक . मॉगत भरी निपटहि जानि ।--सूर । फारना-क्रि० अ० दु० “'फटना” । उ०--(क) धरती भार न «5/ ले... &5 £ < अगव पात्र धरत उट षार । कूम हूर मुह फाटी तिन हस्तिन . की चार ।--जायसी । (ख) दुध फाटि घृत दूधे मिला नाद्‌ जो मिला अकास। तन छूट मन तरह गया जहां धरी मन आण ।-- कीर । फाड्राङ)-वि० [ ठि फाट्+खानः ] (१) फाड़ खानेवात्या । कटखन्ना । (२) ऋोर्धा । बिगढ़ल । चिड़चिढ़ा । (३) भयानक । घातक । फाड़न-संश्ञा स्त्री० पु० [हिं० फाइना ] (१) काग़ज़, कपड़े आदि ; ९५.७८ का टुकड़ा जो फाड़ने से निकले । (२) दृष्टी के ताज़े मक्खन की छोछ जो आग पर तपाने से निकले । फाड़ना-कि० स० [ सं० स्फाटन, हिं० फाटना ] (9 ) किमी पनी या जुकीली चीज़ को किसी सतह पर इस प्रकार मारना या खींचना कि सतह का कुछ भाग हट जाय या उपमं दरार पढ़ जायें । चीरना । चिदीणे करना । जैस, नाखून सा कपड़े फाइना, पेट फाइना । उ०--पेट फारि हरनाकुस मारयो जय नरहरि भगवान ।--सूर । संया० क्रि०-डाल्ना ।--देना । मुहा०--फाढ़ खाना-क्राघ स झल्लाना । विगड़न। । चिड़चिड़ाना । (२) झटके से किसी परत होनेवाली वस्तु का कुछ भाग अलग कर देना । टुकड़े करना । खंड करना । धनियां उढ़ाना । जैसे, थान में से कपड़ा फाइना, कागज़ फाइना, हवा का घादल फाइना । संयो० क्रि०--डालना ।--देना ।--छेना । (३) जुद्दी या मिली हुई वस्तुओं के मिले हुए किनारों को अलग अव्यग कर देना । संधि या जोड़ फंलाकर खोलना । जप, आँख फाबना, मुँह फाइना । (४) किसी गादे द्रव पदाध को इस प्रकार करना कि पानी ओर सार पदार्थ भस्यग अलग हो जार्य । जन, (क) ग्वटाई डालकर कुर फाडना । (ख) चोट पर लगने त फिटकरी खून फाद देती हैं । फाणित-सशा ५० [ सण | (4) रव । (२) कीरा! '_ फानिहा-मंघा पु० | अ० ] (१) प्रार्थना । उ०--कब्रीर काली सुदरी होइ बैठी अल्लाह । पढ़ें फातहा मैव का हाजिर को कहे नाहि ।--कर्यार । र ) वह चड़ावा जो पर हुए लोगों के नाम पर दिया जाय । उ०--हलव्राई की दुकान आर दादे का फातिहा। फानना->० ^° | स० फरण | धुनना। रूद्‌ को फटकना । {1० मण [ स० उपायन ]} किती काम को आरंभ करना। अनुष्ठान करना । कोद काम हाथ में लेना । किसी काम में हाथ लगा दना । फानसख-सना पुर [ फान ] (१) एक प्रकार का दीपाघार जिसके चारां ओर महीन कपड़े या कागज़ का मंडप सा होता है । कपड़े या काग़ज़ से मढ़ा हुआ पिंजरे की झकल का चिरागदोन । एक प्रकार की बढ़ं। कंदील । घिददाप--यह लकड़ी का एक चाकार वा अठपहल ढांचा होता था जिस पर पतला कपड़ा मढ़ा रहता था । इसके भीतर पहले चिरागदान पर चिराग रख कर लोग फरश्च पर रखते थे । उ०--बाल छवीली तियन में बैठी आप छिपाइ । अरगट ही फानूस सी परगट होति लखाइ !--- च्रिहारी ।




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