जैन बौध्द तत्त्वज्ञान | Jain Boudhda Tatvagyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र
उपाटीसे भगवःन बुद्ध कहते हैं-* दीघकालसे तुम्हार; कुछ
निगंठोकि लिये प्याउकी तरह रहा है । उनके जानेपर पिंड नहीं देन!
चाहिये यह मत समझना । *”” “*मभगवान तो मुझे निगंटाको भी दान
कनको कहते द । 2 (दीघतपखी निर्गठ जहां निगंठ नाथपुत्त थे
वहां गया |
(९, प° ४५६ अभयराजकरुमार सुत्त (स० नि० ९: है: ८)
अभयराजकुमार जहां निगंठ नातपुत्त थे वहां गया |
(१०) पू० ४५९ सामजल़फलंसुत्त (दीन निर है: १: रु)
किसीने कहा-** निगंथ नात पुत्त ””
(११) पू० ४८१-सामगामसु्त (ब० नि० ३: है: ४)
( विक्रम पूव० ४२८ )-एक समय भगवान झाक्यदेशमे साम-
गाममें विददार करते थे । उस सणय विभ॑ठनाथ-पुत्त ( गन तीका
महावीर ) अमी अभी पावासे निगरण हये |
नोट-इस समय गोतमबुद्धकी आयु (९०९ जन्मवुद्ध-५ २८) ७9७
वषक्री थी; उनकी प्र यायु ८० वकर थी ।
(१२) पृ० ९२०-महापरिनिव्वाणसु्त (दी° नि २३:१६)
८ प्रसिद्ध यज्चस्वी तीर्थकंर निगेर नातपुत्त ””
(१३) मन्त्िपनिकाय चूर सागोपप दुत्त (३०)
ध्ये इमे मो गोतम समण ब्राह्मणासधिनो गणाचसियि ज्ञाता यस-
स्सिनो तित्थकरा साघुसम्मता बहुजनस्स सेय्यचिदं-निंगंठों ना धपुत्तो ।
(१४) दीघनिकाय त० २८९ पसादिक सुच्त--
“एक समय भगवा सक्केसु विहरति-तेन खोपन समयेन निरमा
नाधपुत्तों पावाये धुना काठकतो होति (श्रीमहावीरका निर्वाण हुमा)
(१५) मज्सिपनिकाय महासचिकसुत्त ( ३६ )
सचिकनिग्गंथपुत्तो महावने उपसंकामि ।
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