आधुनिक हिंदी महाकाव्य में नायक- निरूपण | Aadhunik Hindi Mahakaavya Me Nayak Nirupan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्ट ही उठ वाती तरगों से जब हृदय का सत्य उदुवैलित हौकर वाइय जगतु मैं जाता है तव एक सवैदनात्मक मावा सिव्यक्ति छीती है वही साउित्य की सुष्ट का ४ | साहित्य कै मुत प्रत्त का संव मनीमार्वी सै है परन्त माणा रहित साहित्य स्थिर है न ही स्थायी । हमारा सम्बन्ध ऐसे कै विश्वचिजय की कामना लिए असर लता याचाय कन्तक का मत हे कि शव्द आर्‌ उका जौ ज्ञॉंमाशाली सम्मिलन हौता है वही साहित्य है अराति काव्य मर्मञ्ौः कौ आनन्द दैनै वदी सुन्दर! कक: कवि व्यापार युक्त रचना : वन्य: मैं व्यवस्थित शब्द बोर थी मिलकर : सहित खप मै: काव्य कहलाते हैं साहित्य की संवैदनाणों कौ व्यक्त करते मैं काव्य सकते बहा साधन है । विश्व. के लगमग सभी साहित्याँ का प्रारम्म काव्य से ही हुआ है । संस्वुत-साहित्य आदि कवि की वी भै मखरिति हय उयी प्रकार हिन्दी साछ्त्यि सिदौ दौ अर्‌ नाथौ त्मिक पदावल्थिवै चै ही अपना रुप निर्भित कर्‌ सका । उत्तः काव्य ति दर न सशण्पियी मैं जीवन निहित सवैदना बधिक सै था थे अभिव्यक्त छौती है |. चल न वस्तुत:यह काव्य ही साहित्य की प्रमुख स्वैदनार्ख का प्रतीक है, हरा काव्य की. अनन्त सम्भावना मैं ही महाकाव्य का अवतरण होता है पहले काव्य १.१ रुप निर्धारण आवश्यक है |




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