Nibandh Mala by डॉ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Dr. Lakshisagar Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घिक २६ मु मेक च्क्य डा 8 कि बा जया बा ही अं का कद नी नम लि के किन कद धन पहन लि रस परम त सवा ते. जे 2 परमार की ने कद न हक के नि को नये पिया । दस नाजयों के नाध्यम दादा उ सानिवनसन कीं तप लक वि नसे गे सूप सवा सुदम मनों | तो एस फरने लगे । न कि 1 नव न ह भर हि हिल बला था नाना मं है व ड़ नर मोर उानमुफुन्द मुह हो सुन्दर व सरप फरसे रामसप् यों कर ने यु ड न चक्र जब लू ही नानक | की कक प्र १ डे ते प्र वि रद पे हो लिन नि ९ पं न उप | रस्म ः || तर जद से. डिवेदी की सॉलोचसारम कै ब्यंग्या स कै आडि घागयों का निर्धाह हुआ दे । प्रचाद जोर चन्दीपसाद टिसपेश की जनदत नापानयलियां मीं दिवदी-युग से उत्पभ दुन थी । पदुसा ह सर्मा यो चुटोलो ओर व्यग्यारमफ शा का जस्म नी ससय उना हिन्दी की विविध सेलियों में से उुद्ध तो मौलिक थी कुछ जनुकरण मात्र वी । तो दातियां बँगता मराठी उदूं अंगरेज़ी आदि के अनुकरण पर निर्मित हुई थी उनका नाज अत्तित्व नहीं रह गया हे। हिन्दी को केवल गपनी विशेपताओं से सम्बन्धित शेतियां रह गे है । यास्तव में अनेक प्रभाव के बीच हित्दी गद्य अपना अपनापन सुरक्षित रख सका यह अत्यन्त महत्वपूर्ण हे ओर यह बात उसकी सुल शक्ति का परिचय दा हु विविघ प्रकार की भाषा-देलियो के साध-साथ दिंवेदी-युग से गद्य+ साहित्य के विविच रूपों फा सजन भी अत्यन्त तीन्न गति से हुआ । भारतेन्दु हारश्चन्द्र के समय में नाटक उपन्यास निवन्व आदि की रचना तो हुई थी किन्‍तु द्िवेदी युग में उनकी कला रचना-पद्धति प्रकार आदि की हार से और भी अधिक विकास हुआ । कहानी तो निश्चित रूप से द्विवेदी युग की देन है 1. निवन्व-क्षेत्र से वालमुकुन्द गुप्त यशोदानन्दन अखौरी चतुर्भुज औदीच्य रामचन्द्र शुक्ल आदि अनेक यशस्वी कलाकार हुए अस्तु हिन्दो गद्य की जो परम्परा समप्रसाद निरजनी लल्लुलाल श्रानाल जवाहरलाल भारतेस्दु हरिश्चन्द्र तथा उनके सहयोगियों ने नहला हा गूपरे




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