रविन्द्र -साहित्य भाग 16 | Ravindra - Sahitya (bhag - 16)
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धृतराष्ट्--
गान्धारी--
धृतराष्टू--
गान्धारी--
धृतराष्ट्--
गास्धारोका अवेदन ; काल्य
लयागरदउसेत्तो रह् जायगा क्या ४
ध तव ।
कया दे देगा धर्म तुम्हें ?
दु खभोग नित्य नव ।
पुन्न-पुख राज्य-सुख बाजीमें अधर्मैकी जो
जीते गये, उन्हें कब तक रख सकते हो,
दो-दो कौटि छातीसे लगाये हए ४
हाय, भिये,
धर्मेव कौट दही दिया था मैने इसीलिए
यूतबद्ध॒ पण्डवोका हारा हुआ राज्य-धन ।
उसी क्षण पितृस्नेहं - गुञ्ञनकी न ~ भन
भरने लगी यों कान--“कर् क्या रहा तरू, अरे
धर्म॑ ओः अधमकी दो स्वोँपै जो पैर धरे
एकसाथ, उसकी जर कटां 2 हए अव
एक वार कौरव ये पाप- खोत - मग्न तव
मिथ्या दी है धमते मिलाप करनेका स्वाम;
पाप-द्वारपर पाप सादाय्य है रहा मांग)
मूख भाग्यहीन बुड्डे, कर क्या तू वेढा आज
दुबैल द्विधामें पड £ फेर देनेसे भी राज
घोर ~ अपमान-जन्य घाव पाण्डवोंके जीका
पुर न सकेगा; काम आगमे करेगा धीक!
त्मताक्रा असन अपमानितोके हाथपर
रखना है मौत्तको बुलाना जान-बूसकर ।
छोड़ी मत क्षमतावानोंकों येके स्वल्प पीडा,
उनको छुचल दही दये) पापे न करो कीड़ा
व्यथे ! यदि पापको बुक ही कये सानुराग,
उसे अपनाओ परे तरसे दी दिवा त्याग 1
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