शेर ओ सुख़न भाग 3 | Sher O Shukhan Bhag 3

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Book Image : शेर ओ सुख़न भाग 3  - Sher O Shukhan Bhag 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 न १ <अ ॥ ॥ [१८४६--१९२७ दे सवाग बहादुर नवाव संयद झलीमुहम्मद 'शाद' १८४६ ई०मे उत्पन्न हुए आर १६२७ ई०मं समावि पाई! नियाज फतेदपुरीके शब्दोमे-- बाद व-छिंहाज़ तगज़्जुल वडे मतंबरेके शाइर थे । उनके यदहं मीर-म्ो- ददेका गुदाज, मोमिनकी न्‌ क्तासजी, गालिवकी बुलन्द परवाजी भ्रौर अमीर-श्रो-दागकी सकासत सब एक ही वकक्‍तमें ऐसी मिली-जूली नजर ध्रात्ती ह्‌ कि श्रथ जमाना मुत्किल्से ही कोई दूसरी नजीर पेश कर सकेगा ? न्द अ्रजौमावाद (पटना सिटी) के रहनेवाले थे } श्राप स्वाजा मीर “दर्द की दिष्य परम्परामें हुए हूं । अत आपके कलाममे भी वही असर नजर आता हूं । कही-कही तत्कालीन लखनवी रगकी भी कलक मारती हं ! श्राप मौर “'म्रनोससे भी काफी प्रभावित नजर श्राते है । चाद देहलची-लखनऊ ज़बानके कायल नहीं थे । यही कारण हूं कि उनके कलाममे यत्र-तत्र मुहावरों भर दव्दोका प्रयोग उक्त स्वानोकी परम्परासे भिन्न हुआ हूं । (गादः ख्वाजा 'दर्द' स्कूलके स्नातक थे । इसीलिए हमने आपको 'इन्तकादियात, भाग २, पृ० १५६१




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