शेर ओ सुख़न भाग 3 | Sher O Shukhan Bhag 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 न १ <अ ॥ ॥
[१८४६--१९२७ दे
सवाग बहादुर नवाव संयद झलीमुहम्मद 'शाद' १८४६ ई०मे उत्पन्न हुए
आर १६२७ ई०मं समावि पाई! नियाज फतेदपुरीके शब्दोमे--
बाद व-छिंहाज़ तगज़्जुल वडे मतंबरेके शाइर थे । उनके यदहं मीर-म्ो-
ददेका गुदाज, मोमिनकी न् क्तासजी, गालिवकी बुलन्द परवाजी भ्रौर
अमीर-श्रो-दागकी सकासत सब एक ही वकक्तमें ऐसी मिली-जूली नजर ध्रात्ती
ह् कि श्रथ जमाना मुत्किल्से ही कोई दूसरी नजीर पेश कर सकेगा ?
न्द अ्रजौमावाद (पटना सिटी) के रहनेवाले थे } श्राप स्वाजा
मीर “दर्द की दिष्य परम्परामें हुए हूं । अत आपके कलाममे भी वही
असर नजर आता हूं । कही-कही तत्कालीन लखनवी रगकी भी कलक
मारती हं ! श्राप मौर “'म्रनोससे भी काफी प्रभावित नजर श्राते है ।
चाद देहलची-लखनऊ ज़बानके कायल नहीं थे । यही कारण हूं कि
उनके कलाममे यत्र-तत्र मुहावरों भर दव्दोका प्रयोग उक्त स्वानोकी
परम्परासे भिन्न हुआ हूं ।
(गादः ख्वाजा 'दर्द' स्कूलके स्नातक थे । इसीलिए हमने आपको
'इन्तकादियात, भाग २, पृ० १५६१
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