प्रबोधचन्द्रोदयम् | Prabodhachandrodayam

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Prabodhachandrodayam by श्री रामचन्द्र मिश्र - Sri Ramchandra Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ कथर्‌ मिछानेके लिए दिनरात उपनिषदुको समझाती दै, काम-सइचर धर्म भो वेराग्य आदि द्वारा फोड़ जिया गया दे, इस स्थितिमें आप यथायोग्य विचार तथा प्रतिकार करें । मोइने श्सपर कहा छि शान्तिको क्या बात हे, जब काम भादि उसके विपक्षमें दें तब क्या उसकी इस्ती हैं और मद-मानते हमारा भदेश पुना देना कि धमंको बाकर रखा करे । श्तौ मवसरपर क्रो भौर खोम अपना गुण प्रकट करते इए प्रवेश करते है । महामोहने श्चान्तिको वश्चौक्रेत करनेके लिये यह उपाय सोचा कि शान्ति अद्धाकों पुत्री है, मिथ्यादुष्टिते भद्धाको यस्त करवा देता हं, फिर माके दुःखम शान्ति निकम्मी बन जायगी तदनुसार मोइने मिथ्यादृष्टिको श्रद्धाके वश्चीकाराथं भाङ्खा दी, उसने मौ इस कायक सफरुताके विषयमे माश्वाक्षन दिया । तृतीय अङ्क ्रदधाको मिथ्यादृष्टि यस्त कर लेती है, वन, पवेत, नदीतट, पुण्याभम सर्वत्र शान्ति शद्धाको ददती फिरती है। करुणा नामक सखीके परामञतुसार श्चन्ति भद्धाको पाखण्डा कर्ये मो दरूढने चलती है, वहां वह दिगम्बर जेन साधुर्भोको देखतौ रै जो अपने मतकी अंष्ता बताते धूमते रहते है । वहां उसे जो श्रद्धा भिरतौ हे वह तामसी श्रद्धा होती हे । इसी सिलसिलेमें उसे बोद्धभिश्नुदवे भी दर्शन दोते हेः वह मो अपने मतकौ ओ्ठता बताता इभा घूमता है । वहाँ मी उसे तामसी षद्धाके श दशन होते है। जेन-बोद्धमतमें अपने-भपने मतकौ भेष्ठताके विषयमे रास्थं शेता हे जिम दोनो भपने-भपने मतको भरे सिद्ध करनेका प्रयत्न करते हैं । शान्ति आगे बढ़कर सोमसिद्धान्तको देखती हे जिससे जेनमत साधुने उसका सिद्धान्त-दशंन पूछा । उसने नारी-मदिराके प्रलोमनसे मिशन ओर क्षपणक दोर्नोको भङ्ृष्टकर श्या गोर कापालिकौवेषघारिणी राजसी श्रद्धा वन दोनोंको आलिक्रित करके कापाङ्कि-तेव्य मदिराका सेवन कराया । नामसाम्यसे शान्तिको सन्देह हभा कि यह हमारी माता श्रद्धा दी तो नहदीं हे परन्तु करुणा बताती है कि तुम्दारी माता श्रद्धा विष्णुभक्तिके पास दे यह तो कोर दूसरी रानसी श्रद्धा हैं । कापालिकके « अनुरो बसे जैनमिश्नु ने गणना करके कहा कि-षमं भौर श्रद्धा इस समय विष्णुमक्तिके भाश्रयमें देँ। इस वातकरो नकर कापाकिकने भाकषण विद्यासे उन दोनोंका आकर्षण करना चाहा । सं चतुथं अङ्‌ श्रद्धा भोर मेत्री बातें करती हुईं प्रवेश करती हैं । मैत्री ने श्रद्धासे कद्दा कि मैंने मुदिता से सुना है कि मददाभेरवीके चजुर्से तुम्दे देवी विष्णुमक्तिने बचाया है, यही सुनकर तमे देखने भा रही हं । श्रद्धाने मदद मेरवी वाली घटना कही । मैत्रीने भी अपनी कथा




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