आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन एक अध्ययन | Aacharya Hemachandra Aur Unaka Shabdanushasan Ek Adhyayan

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Aacharya Hemachandra Aur Unaka Shabdanushasan Ek Adhyayan  by डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[४] उपयुक्त सूर्ो में श्ीदत्त, यशोभद्र, मूतदटि, भ्रमाचन्द्र, सिद्धसेन भौर समन्तमद्र इन दुः वैया के नाम आये हैं। रपट है कि इनके व्याकरण सम्बन्धौ ग्रन्थ थे, पर आज वे उपलब्ध नहीं हैं । सैनेम्द क उपसिद्धसेनं वैयाकरणाः ( ५।४।४६ )--उदादस्ण से स्प दै करिये सिद्धसेन को सदसे दष्टा वैयाद्रण भौर उपसिहनन्दिने कदयः ( १४1१६) द्वारा सिहनन्दी को यदा कवि मानते! पर भाषायहेमने क्कृटेऽनृदेन ( २।२।३९ ) सत्र $ उदादरणो मे 'अनुसिद्धसेनं कवयः” द्वारा सिद्धसेन टो सदसे वडा कवि माना दहै! यतप्द रपष्ट है कि भावाय हेम के दूर्द कई जैन देयाकरण हो सुह । देम द्धी सदसे वदो दिरोषता यही है कि इन्होंने अपने पूर्ददर्तां समस्त ्याकरण प्रन्थोंका अभ्ययनकर उनसे ययेष्ट सामप्र ग्रहण की है । हेम के पू्वर्ती ब्याकरणों में विस्तार, काठिन्य एवं छमर्मग या अनुद्त्ति घाइुक्य ये तीन दोप पाये जाते हैं; किन्तु आचार्य देम उक्त सीनों दोषों से सुक्त हैं। ध्याकरण में विदधित दिपय को कम सूत्रों में निवद्ध करना सच्चा समझा जाता दै। अत्पवाक्यों वाले प्रुरण पर्व मरगदरों वले सूत्रों में अतिपाच विपय को प्रकट किया जाय तो रचना सुन्दर और विस्तार दोप से मुक्त समझी जाती है। हेम ने उक्त सिद्धान्त का पूर्णतः पाठन किया है । जिस प्रकार की दाब्दावली के भ्षनुदासन के लिए जितने श्र जैसे सूत्रों की आवश्यकता थी, इन्होने वैसे और उतने ही सूत्रों का प्रणयन किया है 1 एक मी सूत्र ऐसा नहीं दे, जिसका कार्य किसी दूसरे सूद से घटाया जा सकता हो 1 सूत्रों एवं उनकी चूत्ति की रचना ऐसी झब्दावडी में नहीं होनी चादिए, जिसकी स्याश्या की शावरयङता हो यवा ब्यारया दोने पर मी अर्थ विपयक सन्दर यना रदे । धवः ये ग्रन्यन-रीछी दद्दी मानी जाती है, जिसके पढ़ने के साथ ही दिपय का सम्यक्‌ ज्ञान हो जाय सौर पाठक को सदिपयक तनिक भी सन्देद्द उपपन्न न हो । सूत्रों की दब्दादठी उदसी न हो और न जितने मस्तिप्क उतनी ब्यास्याएँ दी संमव हो । आचार्य देम सरठ भौर स्प सैट की कला में अत्यन्त पटुें। स्याकरण की साधारण जानकारी रखनेदाटा भ्यक्ति सी इनके दाय्दाुशासन को हृदयंगम कर सकता है तथा संस्कृठ भाषा के समस्त प्रमुख शब्दों के अजनुदासन से अवगत हो सकना है । दाब्दानुशासन की दोछी का दूसरा गुण यद है कि विधय को स्पष्ट करने के साथ सूत्रों का सुष्पदरियत पबव॑ सुसम्बद्ध रहना भी लावर्यक ६, जिससे




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