मित्र संवाद | Mitra Samvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मित्र संवाद / 15 लगती हैं और मैं उनकी अपेक्षित तारीफ न करूं तो वह नाराज भी होते है पर कभी-कभी आत्मालोचन के मूड में वह कविताओं को बटोरकर उसी जगह रख देते हैं जहां उनकी समझ में उनके पत्र है । ऐसे में दोनों का स्थानान्तरण बहुत जरूरी है । कविता जाये तो जाये, पत्रों में रचा हुआ गद्य तो रहे ! (देखें २८.८. ७४ का पत्र ।) केदार में आस पास की चीजों को देखने और उनका वणंन करने की अद्भुः, क्षमता है । निराला से अंतिम भेंट करके उन्होंने जो अंतिम पत्र लिखा था, उसमें यह क्षमता देखी जा सकती है । ऐसे पत्रों का एतिहासिक महत्व है । वह पुस्तकों के बारे में कम लिखते हैं, अपने भीतर और आस पास देखकर ही अधिक लिखते, है। इसके विपरीत मेरे पत्रों में पुस्तक चर्चा वहुत रहती है । मेरी इच्छा रही है कि पढ़ने में जो कुछ मुझे अच्छा लग। है, उसकी जानकारी केदार को भी हो जाये । पर वह काफी पढ़ते है; जो पढ़ते हैं, कलाकार के भाव से, सीखते समझते हुए, फालतु चीजें एक तरफ हटौते हुए । मेरे उनके काव्य बोध में अन्तर है, यह आप पत्रों में अनेक 7? देखेंगे । उनकी अपनी कविताओं को लेकर मतभेद रहा है । दिनकर, निराला, सुरदास की रचनाओं को लेकर भी मतभेद रहा है कविता से सामाजिक यथाथ कं संबंध को लेकर, पुरानी साहित्य-परपराओं के मूल्यांकन को लेकर, छंद और काव्य शिल्प को लेकर मतभेद रहा है । दो मित्रों के, एक दूसरे की हां में हो मिलाने वालों के, ये पत्र नही है । जहां भी ऐसे मतभेदों का विवरण है,आज के आलोचकों और कवियों को अपने काम लायक कुछ सामग्री अवश्य मिलेगी । पर ये मतभेद गौण हैं । उनसे हमारी मंत्री कभी नही डगमगायी । जीवन में असह्य दुःख के क्षण भी आते हैं। ऐसे क्षणों में हम सदा एक-दूसरे के पास रहे हैं । व्यक्ति- गत रूप में यह मंत्री मेरे लिए कविता से भी अधिक मुल्यवान है । ये पत्र उस मंत्री के साक्षी दस्तावेज़ है। हम दोनों मे एक बात सामान्य है--बीते दिनों के बारे में हम बहुत कम सोचते है । क्या कर रहे है, आगे क्या करना है, अधिकतर ध्यान उसी पर केद्रित रहता है । हमारी मंत्री का लंबा इतिहास है, इस पर भी ध्यान कम ही जाता है । लगता है, सारे तथ्य सिमट कर गुणात्मक रूप से भावशकक्‍्ति में परिवर्तित हो गए है--वह भावशक्ति जो रचनात्मक क्षमता का ख्रोत है । इस संग्रह में केदार के कुछ पत्र मेरे भाई मुशी को लिखे हुए हैं । मुंशी पत्र- कार है । लोकयुद्ध (फिर जनयुग), हिन्दी टाइम्स जैसे प्रकाशित पत्रों के अलावा वह अनेक हस्तलिखित पत्रों के संपादक रहे है ' हमारे पारिवारिक पत्र सचेतक को निकालते उन्हें दस साल हो गए हैं । केदार इसके नियमित पाठक हैं । उनकी कुछ कविताएं सबसे पहले सचेतक में छपी हैं। इनमें अपनी मां पर लिखी केदार की कविता विशेष उल्लेखनीय है। मूंशी को लिखे हुए पत्रों में संप्रेषण की वेव-लेन्थ




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