मित्र संवाद | Mitra Samvad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
545
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मित्र संवाद / 15
लगती हैं और मैं उनकी अपेक्षित तारीफ न करूं तो वह नाराज भी होते है पर
कभी-कभी आत्मालोचन के मूड में वह कविताओं को बटोरकर उसी जगह रख देते
हैं जहां उनकी समझ में उनके पत्र है । ऐसे में दोनों का स्थानान्तरण बहुत जरूरी
है । कविता जाये तो जाये, पत्रों में रचा हुआ गद्य तो रहे ! (देखें २८.८. ७४ का
पत्र ।)
केदार में आस पास की चीजों को देखने और उनका वणंन करने की अद्भुः,
क्षमता है । निराला से अंतिम भेंट करके उन्होंने जो अंतिम पत्र लिखा था, उसमें
यह क्षमता देखी जा सकती है । ऐसे पत्रों का एतिहासिक महत्व है । वह पुस्तकों
के बारे में कम लिखते हैं, अपने भीतर और आस पास देखकर ही अधिक लिखते,
है। इसके विपरीत मेरे पत्रों में पुस्तक चर्चा वहुत रहती है । मेरी इच्छा रही है
कि पढ़ने में जो कुछ मुझे अच्छा लग। है, उसकी जानकारी केदार को भी हो जाये ।
पर वह काफी पढ़ते है; जो पढ़ते हैं, कलाकार के भाव से, सीखते समझते हुए, फालतु
चीजें एक तरफ हटौते हुए । मेरे उनके काव्य बोध में अन्तर है, यह आप पत्रों में
अनेक 7? देखेंगे । उनकी अपनी कविताओं को लेकर मतभेद रहा है । दिनकर,
निराला, सुरदास की रचनाओं को लेकर भी मतभेद रहा है कविता से सामाजिक
यथाथ कं संबंध को लेकर, पुरानी साहित्य-परपराओं के मूल्यांकन को लेकर,
छंद और काव्य शिल्प को लेकर मतभेद रहा है । दो मित्रों के, एक दूसरे की हां
में हो मिलाने वालों के, ये पत्र नही है । जहां भी ऐसे मतभेदों का विवरण है,आज
के आलोचकों और कवियों को अपने काम लायक कुछ सामग्री अवश्य मिलेगी ।
पर ये मतभेद गौण हैं । उनसे हमारी मंत्री कभी नही डगमगायी । जीवन में असह्य
दुःख के क्षण भी आते हैं। ऐसे क्षणों में हम सदा एक-दूसरे के पास रहे हैं । व्यक्ति-
गत रूप में यह मंत्री मेरे लिए कविता से भी अधिक मुल्यवान है । ये पत्र उस
मंत्री के साक्षी दस्तावेज़ है।
हम दोनों मे एक बात सामान्य है--बीते दिनों के बारे में हम बहुत कम
सोचते है । क्या कर रहे है, आगे क्या करना है, अधिकतर ध्यान उसी पर केद्रित
रहता है । हमारी मंत्री का लंबा इतिहास है, इस पर भी ध्यान कम ही जाता है ।
लगता है, सारे तथ्य सिमट कर गुणात्मक रूप से भावशकक््ति में परिवर्तित हो गए
है--वह भावशक्ति जो रचनात्मक क्षमता का ख्रोत है ।
इस संग्रह में केदार के कुछ पत्र मेरे भाई मुशी को लिखे हुए हैं । मुंशी पत्र-
कार है । लोकयुद्ध (फिर जनयुग), हिन्दी टाइम्स जैसे प्रकाशित पत्रों के अलावा
वह अनेक हस्तलिखित पत्रों के संपादक रहे है ' हमारे पारिवारिक पत्र सचेतक
को निकालते उन्हें दस साल हो गए हैं । केदार इसके नियमित पाठक हैं । उनकी
कुछ कविताएं सबसे पहले सचेतक में छपी हैं। इनमें अपनी मां पर लिखी केदार
की कविता विशेष उल्लेखनीय है। मूंशी को लिखे हुए पत्रों में संप्रेषण की वेव-लेन्थ
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