परम साधन | Param Sadhan

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Param Sadhan by श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बालकोंके कतेव्य ११ रेख-यात्राके समय जगह रहते हुए भी अपने डिब्बेमे दूसरेको नहीं घुसने देना; तीसरे दर्जेका टिकट लेकर इंटरमें बैठ जाना अधवा इंटरका टिकट लेकर सेकडमे सरार होना, टिकटके अनुसार नियत किये हुए परिमाणसे अधिक बोझ बिना किराया चुकाये ही ले जाना, हाकिम या पंच बनकर पक्षपात करना; व्यापारमे झूठ; कपट, चोरी, बेईमानी करना और झूठे बही-खाते बनाना, सरकार और रेलवेकी उनके कर्मचारियोसे मिलकर चोरी करना, सित आदि ठेकर चोरी तथा अनैतिकतामे सहायता करना आदि सव नैतिक पतन' है | उपयुक्त दोपोको छोड़कर सबके साथ पक्षपातरहित; न्याय और समता- युक्त छोमरहित यथायोग्य व्यवहार करना--यह नैतिक उन्नति' है | उपयुक्त सामाजिक तथा नैतिक बातोंका पाठन यदि मान-बड़ाई आदि- के छिये किया जाय तो मान-बड़ाई मिती है और यदि कर्तव्य-बुद्धिसे निष्कामभावपूर्वक किया जाय तो परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है । झूठ; कपट; चोरी; बेईमानी, मद्यपान; मांसभक्षण, थूत और हिंसा आदि शाखनिषिद्ध दोषोंसे रहित होकर यज्ञ, दान; तप; सेवा; पूजा, तीर्थ; ब्रत, परोपकार, शौचातवार; सदाचार आदि शाख्राचुकूल घर्मका श्रद्धापूर्वक पालन करना “घार्मिक उन्नति? है । यह धार्मिक उन्नति यदि निष्काममावसे या भगवद्पीत्यर्थ अथवा मगवस्रापत्यथं हो तो इस लोक ओर परल्कमे कल्याण करनेवाटी है तथा यदि सकामभावसे की जाय तो इस लोक और परढोककी कामनाकी पूर्ति करनेवाली है । आत्मा और परमात्माका यथार्थ ज्ञान होनेके लिये सत्सज्ञ और खाध्याय करना; विवेक-वैराग्यपूर्वक संसारके विषयभोगोंसे मन और




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