प्रतीक - शास्त्र | Pratik Shastra

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Pratik Shastra  by श्री परिपूर्णानन्द वर्मा - Shri Paripurnanand Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सकेत रस-सग्रह मे सकेन प्रिय शद्धुया निजपति प्रावोचदध्वश्चमम --जिस पुलिम शब्द का प्रयोग किया गया है उसका भ्रथहै स्वाभिप्रायन्यञज्जकचेष्टाविश्चेष श्रपने अभिषाय को व्यक्त करने के लिए जो विशेष चेष्टा की जाय जसे किसी काम को सना करने के लिए शभ्राख से इशारा करना । सकेत का श्रथ है परिभाषा शली प्रशप्ति ममय 1 इनं सन दर्थ में प्रतीक का उपयोग नहीं हो सकता । सकेत क। लक्षण नही कह सकते । प्रतीक को लक्षण नहीं कह सकते । जिससे देखा जाय श्रौर जाना जाय, वह लवग है । जैते यह्‌ बान काय सिद्धि का लक्षण है । उस भ्रादमी के लक्षण अच्छे नही हू । इसलिए किसी के आँख मटकाने के सकेत से उसके चरित्र का लक्षण जाना जा सकता है । किसी लक्षण से कोई सकेत प्रात हो सकता है । पर यह दाना शब्द एक दूसरे के पूरक हो सकते हू पर्यायवाची नहीं । इसलिए लक्षण प्रतीक नहीं हो सकता । १. सकेतकालमनस विर शात्वा विदर्धया ! हसन्नेत्रापिताकृतत रीरापश्च मिमीकितम्‌ ॥--सादित्यदर्षण ८ २२ । २ रक्ष्यते, क्षायते अनेनेति ।




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