प्रकाशित जैन साहित्य | Prakashit Jain Sahity

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रकाशित जैन साहित्य  - Prakashit Jain Sahity

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

Add Infomation AboutPt. Pannalal Jain Sahityachary

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ग्रास्ताविक इस पुस्तकके सयोजक बा० पन्नालालजी बैन भ्रणवाल श्रपने चिर- परिचित मित्र । श्राप बडे ही मेवाभावी श्रीर साहित्य-षे मी सज्जन है साहित्य.^से'घयो को प्रपनी सेवार प्रदान करनेमे सदा दी उदार एव परिश्रम- सील रहा करते है । करई वषं तक भाप वीर-सेवा-मन्दिश्के मत्री रह चके हैँ । इस पुस्तक का आयोजन मी प्रापके उक्त मत्रित्व-कालमे ही हुश्ा है । पुस्तक के प्रायोजनादि-सम्बन्धकी कुछ रोचक-कथा इस प्रकार है, जिसे उन धक्रोप जाना जाता है जिन्हे सयोलकजीने भरपने पास सुरक्षित रक्ष चोडा है -- डा० माताप्रसादजी गुप्त एम० ए° प्रयाग सत्र १६४३ मे हिन्द धस्तक- साहित्य नामकी एक प्रन्यसूची लिख रहे धे, जिसमे हिन्दीकी शुनी हुई पुस्तकोका परिचय उन्हें देना था श्रौर वह भी सु १८६७ से १६४३ तक १०० वषं के भीतर प्रकाङित पूस्तकोका--लिखितक्रा नही । नवम्बर १६४३ मे डा० साहब के तीन पत्र बा० पन्नालालजी (संयोजकजी) को प्राप्त हृए, जिनमे यह इच्छा व्यक्त की गई कि यदि हिन्दीके जेन ग्रन्थोकी कोर श्रभीष्ट सूची उनके पास तस्यारहो यावे तय्यार करके दे सकरेतो उसका उपयोग उक्त सूची में किया जा सकता है । इन पत्रो पर से सयोजक- जीको हिन्दी जेन स्न्‍्योकी एक ऐसी सूची तय्यार करनेकी प्रेरणा मिली जिसमे वे प्रन्थ भी शामिल थे जो मूलत भले ही सस्छरृत-प्राकृतादि भाषाश्रो मैं हो परन्तु उनके श्रनुवादादिक हिन्दी भाषामे लिखे गये हो । तदनुसार उन्होने हिन्दी जेन ग्रन्थो कौ एक सूची नय्यार की भ्रौर उसे देखने-जाँचने के लिये मेरे प्रास सरसावा वीर-सेवा-मन्दिरमे भेज दिया । यह्‌ सूची श्रपने को जनवरी १९४४ के भर तमे प्राप्त हुई भौर उसे सस्था के विद्वान प० परमा- नन्दजीकों जाँच श्रादि कै लिये सुपुर्दे कर दिया गया । प० परमानंद जीने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now