साहित्य - सीकर | Sahity - Sikar

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Sahity - Sikar by महावीरप्रसाद द्विवेदी - Mahaveerprasad Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेद १५. ्श अदृश्य रहते हैं तो भी ठीक नहीं । क्योकि, इस दशा में, यदि दस जगह मिन्न-मिन्न यज्ञ होगे तो एक शरीर को लेकर वे कहाँ-कहाँ जायेंगे १ प्रतएव मन््र को दी देवता सान लेना चाहिए] परन्तु इस विषयमे श्र अधिक न लिखना दी अच्छा है। वेदिक समय मे पशु-दिसा बहुत होती थी । यज्ञो में पशु वंहुत गारे जाते थे । उनका मास भी खाया जाता था । उस समय कई पशुत्रों का मास खाद्य समा जाता थषएट। उनके नाग निहश की श्रावश्यकता नहीं । इस विपय के उल्लेख जो वेदों में पाये जाते हैं उन्हें जाने दीजिये । महाभारत में जो चर्म्मणव॒ती नदी श्रौर रन्तिदेव याजा काजो वृत्तान्त है उसे ही पढने से पुराने जसाने की खाद्याखाद्य चीजों को पता लग जाता है | सोमरस का पान तो उस समय इतना होता था जिसका ठिकाना नहीं । पर लोगो को सोमपान की श्रपेत्ता हिंसा श्रधिक खलती थी । इसी वैदिकी हिंसा को दूर करने के लिए गौतम बुद्ध को “'श्रहिंसा. परमोधर्स्म:”” का उपदेश देना पढ़ा | सामवेद के मन्त्र प्रायः ऋग्वेद ही से लिए गये हैं । सिफ उनके स्व॒रों में भेद है । वे गाने के निमित्त रलम कर दिये गये हैं । सोमयज्ञ मे उद्गाताओओं के द्वारा गाने के लिए ही सामवेद को थक करना पड़ा दै । सामवेद मी यज्ञ से सम्बन्ध रखता है श्रौर यजुवद मी । सामवेद का काम केवल सोमयज्ञ से पडता है । यजुवद मे सभी य्ञौँ के विधान त्रादि दै । साम की तरह यज्ञवंद मी ऋग्वेद से उद्धूत किया गया हे, पर, हो, साम की तरह प्रायः बिल्कुल दी ऋग्वेद से नकल नद्दी किया गया । यजुवेंद ( वाजसनेयि-संहिंता ) का कोई एक चठुधाश मन्त्र भाग ऋग्वेद से लिया गया है । शेप यजुवेद ही के ऋषियों की रचना है । यजुर्वेद में गद्य भी है, साम में नहीं । क्योंकि यह गाने की चीज है | यज़ुर्वेद के समय में ऋग्वेद के समय की जैसी मनोहारिणी वाक्य रचना ज




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