संस्कृत - साहित्य में सरस्वती की कतिपय झाँकियाँ | Sanskrit - Sahitya Mein Saraswati Ke Katipya Jhakiya
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)--१--
संस्कृत-साहित्य में सरस्वती का विकास
(दिष्णोप्जा म 52न्डच्ती दे. उद्ाजता( दल ट)र
ग्रकृत शोध-मरदन्ध सात अध्यायों तथा एक परिदिष्ट भाग मे विभवत टै । प्रथम
अध्याय का नाम सरस्वती ऋ प्राथमिकः नदी-रूप' है । इस सन्दर्भ में यह बताया गया
है कि सरस्वती सर्वेप्रयम एक नदी थी । यह प्राचीन भारत की एक अत्यन्त विशाल
तथां गहरी नदी थी । ऋषि-गण इस के किनारे पर रहते थे। इसका जल अत्यन्त
स्वास्प्य-वधंक था तथा इस नदी का तट शान्त वातावरण से युक्त या, भते एव ऋषि-
गण इससे अत्यन्त प्रभावित्त होकर इस पर देवी का आरोप करने लगे तथा साथ-साथ
इसे यज्ञ से सम्बद्ध कर मंत्रीं के उच्चारण में इसकी महती उत्प्ररणा की कल्पना कर
इसे मंत्रों की देवी अथवा वार्देवी भी स्वीकार करने लगे । ऋग्वेद में आप: का वर्णन
प्राप्त होता है । ये जल सामान्यतः नदियों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा इन नदियो में
भी सरस्वती प्रधान है । वामनपुराण (४०.१४) मे सभी जलो का सरस्वती से तादात्म्य
दिखाया गया है । इम आधार पर वैदिक जलों का सरस्वती से तादाह्म्प दिखाना
असज़त नहीं है । हेमचन्द्राचार्य (अभि० चि० ४.१४५-१४६) से इस कथन की पृष्टि
देखी जाती हैं । तदनन्तर सरस्वती शब्द की व्युत्पत्ति दिखाई गई ई, जिससे उसका
जल से युक्त होना, गतिशीला होना, उत्साह-सम्पर्ना होना आदि भावों की अभिव्यक्ति
होती है । बस्तुततः सरस्वती उत्तर भारत की एक महती नदी धी ओौर यह् दपद्रती नदी
के साय ब्रह्मावत का निर्माण करती थी--इस ओर संक्रेत स्वत मनु ते मनु० स्प
(२.१७) में किया है ।
इस निरीक्षण के उपरान्त सरस्वती के वास्तविक स्थान तथा मामं के मरन्येपण'
का प्रयास किया गया हैं । इस सन्दर्म में राय, के० मी० चट्टोपाध्याय, मवसमुलर,
दिवप्रसाद दास गुप्ता आदि चिद्वानों के मतों को प्रस्तुत किया गया है । इसी प्रसज् में
भौगोलिक सथा ऐतिहासिक तथ्यों का निरीक्षण किया गया है । भौगोलिक तथ्य के
आधार पर सिद्ध किया गया है कि सरस्वती सिवालिक रेव्जेज से निकलती थी 1
सिवालिक रेल््जेज में भी 'प्लक्ष प्रालवण' सरस्वती के उद्गम का एक सुनिश्चित स्थान
था मणितलिक तथ्यों में समुद्रों का €यान मा प्रमुख है। आति प्राचीत काल भें मारता
की भौगोलिक स्थिति आज से सर्वया भिन्न थी तया माज के यङ्ग टिक मंदान के
पश्चिम तथा राजस्थान के पूर्व की ओर एक 'प्र्लीकड ऽद था, जिसमे सरस्वती
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