प्रशन व्याकरण सूत्र | Prashn Viyakaran Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५) के रूप में नही ।** लगता है, प्रश्न व्याकरण सूत्र के विषय तथा अध्ययन आदि के सम्बन्ध मे बहुत प्राचीनकाल से ही कोई एक निश्चित धारणा नही रही है । कहीं स्थानाग आदि सूत्रोके सकलनकालमे वाचना भेदसे प्रश्न व्याकरण के विभिन्न रूप तो प्रचलित नहीं थे ? लगता तो ऐसा ही है । दिगम्बर परम्परा के धवला आदि प्रन्थो में प्रश्न व्याकरण का विषय बताते हुए कहा है कि प्रश्न व्याकरण में आक्षेपणी, विक्षेपणी, सवेदनी और निर्वेदनी, इन चार कथाओं का वर्णन है। आक्षेपणी मे छह द्रव्य और नौ तत्वों का वर्णन है । विक्षेपणी म परमत की एकान्त दृष्टियो का पहले प्रतिपादन कर अनन्तर स्वमत अर्थात्‌ जिनधमे को स्थापना की जनी है। स्वेदनी कथा पुण्यफल की कथा है, जिसमे तो्थकर, गणधर, ऋषि, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, देव एव विद्याधरो की ऋद्धि का वर्णन है । निर्वेदनी में पापफल को कथा है, अत उसमे नरक, तियंच, कूमानुष योनियो का एव जन्म, जरा, मरण, व्याधि, वेदना, दरिद्रता आदि का वर्णन है । ओर यह प्रश्नव्याकरण अग प्रश्नो के अनुसार हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, भनाभ, सुख, दुख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु मौर मख्याका भी निरूपण करता ह ।** २५-ससमयपरसमयपण्णवयपत्त यबुद्धविविहुत्यभासा भासियाण , अइसयगुण उवसमणाणप्पगारआयरियमासियाण, बित्यरेण वीरमहेसीहि विविहचित्वर- भासियाण । --समवायोस सूत्र, १४१ २६--अक्खेवणी विक्खेवणो सवेयणो निम्बेयभौ चेदि चडव्विहामो कहाभो य्न हि । तत्थ अक्लेवणो णाम छटुभ्व-णव पयत्थाण' सर्वं विगतर-समयातर-निराकरम सुद्धि करेती पर्वेदि । विक्लेवणो णाम परसमएण ससमय दूसंती पर्छा दिगंतरसुद्धि करेंतो ससमयं थावती छहष्ब-णवपयत्ये परूवेदि । सवेयणो णाम पुण्णफलसंकहा । काणि पुश्णफलाणि ? तित्थपर-गणहूर- रिसि-चक्कवट्टि-बलदेव-वासुदेव-सुर-विज्जाहररिद्धीओ । णिव्वेयणी जाम पावफलसकहा । कामि पाक्फलानि ? शिरय-तिरिय कुमाण्‌ सजोणोतु जाहइ-जरा-मरभ-वाहि-वेयणा-हालिवृदादीनि । ससारतरोर- भोगेसु वेरग्गुष्पाहणी निम्बेयणी भाम ` । पण्हादो हद-नद्ट-मुद्ठ-चिता-लाहालाह-ुह-दुष्ख-जोविय-म रण-अय- पराजय-णाम-दव्वायु-सखं थ परूवेदि । -धवला, भाग १ पु० १०७-५




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