जैन दर्शन | Jain Dasharn

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Jain Dasharn by लक्ष्मण - Lakshman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य ४ जैन दर्शन द्रः श्वेताम्बर तथा दिगम्बर युनियोका वेप ओर आचार-क्ष वश्षनको माननेवाले दो सम्मदाय है. । जिसमे प्एक श्वेताम्वर और दूसरा दिगम्बर है । श्वेतास्वर मुनिश्रौफा चेप श्नोरः ्राचार शस भकार हे । भ्वेताम्बर मुने श्रपने पास सदेव रजोदरण्‌ 'और सुख- पमी रखते दँ । केशापनयभके लिये दजामत न कराकर वे अपने श्राप या दूसरे मुनिके हाथसे सूछ दादी तथा मस्तकके केश उखेड डालते हैं, यह उनका सुख्य लक्षण है। वे कटिमे-( कमरमें ) चोलपट्क नासक वर पदनते हैं पर शरीर ध्राच्छादन करने के लिये पक चहर रखते हैं। मस्तक पर किसी प्रकारका चख नहीं रखते । इस प्रकारका उनका वेष होता दे । मार चलते या उरते चैरते किसी भी जीवको किसी प्रकारका दुभ्ल नो शस वातका वे सदैव ध्यान रखते है। वे माग चलते समय पक जये प्रमाणा ( चार हाय प्रमाण ) मागेमं भागे दृष्टि रखकर चलते हैं। बोलते समय, 'माहार पानी च्रदणा करे में, उपयोगी चस्तु्मोंके लेने और रखनेमें तथा शोच वंगेरह जानेमें किसी स्थूल या सूचम जीवचको किसी प्रकारकी जरा भी तकलीफ न पहुँचे इस वातके लिये वे चढ़े ही सावधान रहते हैं । वे मानसिक, वाचिक तथा शारीरिक उत्तियो, घल्रत्तियों पर्‌ सदेव संयम रखते हैं । शरीरसे दिंसा करते नहीं कराते नहीं घोर न द्यी करनेवालेको श्रदमति देते । वे सव जगह दमेशह दी सत्य वचन वोलते द । श्रावरयकता पढ़ने पर भी वे कभी किसीकी कुछ वस्तु मालिकके विये विना ग्रहण नद्यं करते । जीवन पर्यत मन वचन्‌ शरोर शरीरस नित्य जह्यचर्यका पालन करते हे । किसी पकारकी धमे सामग्रीमे भी




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