भूषण - ग्रन्थावली | Bhushan - Granthavali

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Bhushan - Granthavali by राजनारायण शर्मा - Rajnarayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) छन्द सख्या ४१ (बाजि बब' चढ़ी साजि ) में ही उल्लेख किया है । अपिकुज् से चार चत्रियकुलों का जन्म हुआ कहा जाता है। जिनमें एक सोलही भी हैं । रुद्रशाद सोलकी का पत्ता तो इतिहास में नद्दी मिलता पर इसके पिता हदयराम का सलाम मिलता है। ये गहोरा प्रान्त के शाजा थे । गहदोंरा चित्रकूट से तेरह मील पर है। चित्रकूट पर भी इनका उस समय राज्य प्रतीत होता है । करवी जो चित्रकूट से तीन ही सील पर है, इनके राज्य में सम्मिलित था । सबत्‌ १७२८ के लगभग महराज छत्रसाल ने शेष घुन्देशखड के साथ इस राज्य पर भी झधिकार कर लिया था । रीचाँ का बघेल राजवश सोलेंफी ही है। कई कहते हैं कि इनके ज़मीदारों में से बर्दी के एक बाचू रुद्रशाह दो गए हैं जिनकें पिता का या बड़े भाई का नाम दरिहरशाह था । छं लोग मूषा के “वराम सुह ख का श्रथ इद्र का पुत्र हृद्यराम करते है । उनके श्र्थातुसार गदोरा प्रान्त ( चिन्र- करट ) के अधिपति रुद्रशाह के पुत्र हृदयराम ने इन्हें कवि 'भूषण की पदर दी थी । पर अभी तक इस विषय में कुछ निश्वव तौर से नहीं कहा जा सकता । कवि भूषण के सब जीचनी-लेखक इस बात में सहमत हु कि भूप ने पहले-पदल सोलकी नरेश का झाश्रय लिया था, जिन्न इन्दे भूषण को पदवी दी । पर इस राज्य से भूषण का गए, इस विषय में पर्याप्त मतभेद है । कुछ लोगो का कहना है कि भूपण यहाँ से दिल्‍ली के बादशाह श्नौरगसरेव ॐ दरवार मे सये, जहाँ कि उनके भाई चितामखि पदे दी रहते ये । वा से शिवाजी के यहां पचे । दूसरे का मद है फि शिवाजी छी ख्याति वथा वीरता क हाल सुनकर भूषण सोलकी -नरेश का आश्रय छोड़कर दहाँ से सीधा मराठा दरवार मेँ गये । पहले मत वाले




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