अंतिम दर्शन | Antim Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मीया फूल ` ११
¢ / = क, ४०4
चुड़िया और नजदीक सरक आई। मुह के पास मह लाकर
आंखों में श्रांख गड़ा कर जव उसने पुकारा “बेटा !”
तब बेटे ने ध्यन्तिम सांस ली । बेटे की झांखें श्र खुल
गह । मालम यह हो रहा था कि बेटा अपनी अम्मा का
श्नन्तिम द्वेन कर रहा ई !!
सुसांया फूल
सणाल ने जिस दिन सततोश से कहा कि अब तो किसी भी
हालत मे गाड़ी आगे नदीं चलती, केवल उसी दिनि सतीश का
ध्यान भंग हुआ | उसने सन में सोच लिया बस अब नहीं
जसे भी हो उसे यह कविता करने वाली आदत छोड़ ही देनी
पड़ेगी । श्रन्यथा खणाल की ही क्या होगी । धीरे धीरे वह भी
तो इस जीवन से थकी जा रही ह ।
सतीश कन्थे पर अपना कुत्तौ रख कर घर से निकला ।
शायद उसे यदह ध्यान न था कि आजकल के जमाने में यदि
कोई कन्धे पर कृत्तो श्ख कर वाहर निकलता है तो उसे लोग
पागल सम कते हैं । बह चलता
रोज सतीश जैसे कितने दी कपड़ों के अभाव के कारण
नंगे वदन सड़क पर भटका करते हैं, उसे कोन देखता है।
सतीश को भी किसी ने न टोका । जान पहिचान वाला को
रास्ते में सिल जाता तो -शायद टोकता भी | परन्तु उस दिन'
कोई .वेसा मिला ही नहीं तो टोकता कौन । चह चलता ही
गया |.
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