श्री अनुयोगद्वार सूत्रम भाग - 1 | Shri Anuyogadwar Sutram Bhag - 1
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
71 MB
कुल पष्ठ :
862
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनुयोगचन्धिका टीका मङ्गलाचरणम् द
इह मनुष्यजन्म दुरम, यथा-ेनाऽपि क्रीडापरेण देवेन यदि ाणिकथ-
मयं स्तम्भं वजे ण चूर्णीकृत्य परमाणुतुल्यं तवच्चृणे नलिकान्त्मिधाय मेरुदिखरं
समारुह्य पःकृतसमीरणैस्तच्चृणे' सकं स्थतः रथह्ञायित भवेत् । तदनन्तर च
यदि विश्षिप्तास्ते परसाणवः प्रचण्डपवनोदताः सर्वासु दिषु द्र गता एके
कशो विभिन्नाः पतिताः स्यु स्तदा तान् परमाणुसूपान् सवतः संचित्य तं; पुनः
म धासीलाल शनिव्रति भव्य जीवो के उपोर के निमित्त प्रवचन फे सिद्धान्त
को स्पष्ट करनेवाली अनुयोगद्वार स्र पर॒ अनुयोगचद्धि का नाम की सरठ
व्याख्या को कि जो भव्य जीवों के लिये आनन्दप्रद हे-रचता हूं । ॥४॥
इस चतुमगतिरूप संसार में मनुष्य जन्म बहुत दुलभ है। इस की
दुठेभता शाख़कारोंने इस प्रकार से-प्रकट की हे-जैसे क्रीडा में तत्पर चना
हुआ कोई-देव माणिक्य फे स्तम्भ धो चज से तोडक्र चूर २. कर देवें,
और फिर उस चूणे रो एक नली फे भीतर भरकर मेरु फे रिख एर खडा
२ अपनी फूंक से इधर उधर दिशाओं में उसे सब ओर उडादेवें। इस तरह
सब दिशाओं में विखरे हुए वे चूण परमाणु कि जिन्हें प्रचंड वायु के वेशं
ने एक २ करके बहुत अधिक दूरतंक तितर वितर कर छिया है अब यदि
वह देव-उन विखरे हुए विभिन्न परसाशुओं को सब दिशाओं से एकत्रित
अन्य छवाना 5पडारने भाठे, अक्यनना सिद्धान्त स्पर्टीररयु झरनारी,
सघयेषगदार् सन्नी = मदुयाजयन्िञ नामनी सरा न्याष्या, है बेर लन्य सवा
मारे नमन हम छे, लेनी इ घासीलल यनि, स्यना षद् (छ. ध ४ ॥
यार् ग{वनाना मा संसारम् मदयुष्यन्नमनी प्रत्न थनी भटा इष्छर ए.
पेनी ईषाः शाखे नीयिना वान्त द्वारा अतिपाहन अयु ए.
धारेः ॐ ओषधं मे$ देन् अोञमा वतपर् मनद, 8. त कन्नो मह्द्थी माना
स्पशेमे त4 नाणी रेन सूरिर, ञरी नमे छ लार् महते चुने से
ननी सरी ते छ. सरपट ते देन ते माुषटना जथा सदरेदी ननीने दन
भद् प्नेतना शिण उपर श्श्ने असे ₹ड 8 सने दढ मारी मारीने पे नमीसं
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