भारतीय राजनीति -विक्टोरिया से नेहरु तक | Bhartiya Rajneeti Victoria se Nehru Tak
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
478
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ भारतीय राजनीति
जाजं । इसीके आसपास एक व्यापारिक केन्द्र वन गया और बादमें यही वेन्द्र मद्रासके नामसे
मद्याहूर हुआ |
थाहजहाँकी चादयाहतके जमानेमें हुगलीमें और उसके आसपास पुर्तगालियोंके
उत्पात और जत्याचार एकएम बढ़ गये । बाददाइने बंगालके सेदास्कों पुर्तगालियींको
सजा देनेका आदेश दिया । याददी फीजने हुगलीको घेर लिया । पुर्तगाली मारे गये, पद हुए
और हुगलीसे उनका नाम निशानतक मिट गया । जंशेजोंनि इनकी जगह बंगाल व्यापार
करनेकी अनुमति माँगी ओर प्राप्त भी कर ली । लेकिन उन्हें भारी कर देने ओर हुगलीतक
अपने जद्दाज न लानेकी दार्त गाननी पड़ी ।
तमी अग्रेजाके सौगाग्यसे यादटजर्टोकी पुत्री वीमार पड़ी । यादव उन दिनों जपनी
बेटीके साथ दक्षिणमें ही था । चजीरने सूरतसे एक अंग्रेज डाक्टर बरौटनको बुल्मया जिसने
बाइजादौका इलाज चर उसे चंगा वर दिया । शादजहाँने डावटरको मुँहगों गा नाग देनेका
वादा किया । उसने देदभक्तिकी एक बहुत ऊँची मिसाल पेदा चरते हुए कहां कि अंग्रे जकि
बंगाल बिना कर दिये व्यापार करने और कारखाने खोलनेकी इजाजत दी जाये । डावटरको
लाटी पर्मान मिल गया जिसे लेकर वह घाहजहाँके बेटे घाइडजाके, जो उन दिनों बंगाल
सूवेदार था, दुरवारमें पहुँचा । उन्दीं दिनों झुजाकें टरममें एक मटिला बहुत यादा बीमार
थी । डाक्टर चीटनने उसे भी चंगा कर दिया जोर शादद्युजाने कृतशतापृवल्रक दक्टिरको
र सम्भव सहायता वंगाल्मे स्थायी रूपसे अंग्रेजी व्यापारप्रमुत्व कायम करनेके लिए, दी |
जद्दॉगीरके दरयारमें आये ब्रिटिद्य राजदूत सर टामस रोने सन् १६१६ में लिखा था---
“यर्दा १०० से अधिक जातिर्यो और धर्मद, पर वे अपने सिद्धान्तो या पूजाचिधयिपर गर्ते
नर्द । दर एकको अपने टं गते अपने ईश्वरकी आराधना करनेकी पूरी छूट है । घर्गके कारण
सताया जाना यहाँ जजात है ।”?'
सारी बासनसत्ता मुगल बादयादोमे केन्द्रित थी । उनका कथन ही कान था और
वादशादका विरोध अधिक सवल दृथियार दी कर सकते थे । यासनकाममं ये अमीरोंसे
मदद लेते थे । ता
थादजहीका राज्य जनताके लिए. बड़ा समृद्धिगाली बताया जाता है । माछगुजारी
चादयाइकी आमदनीका मुख्य खोत थी । यदह यादी खर्च॑कै लिए काम आती थी; जनताके
दितमें, उसे सुचिघाएँ देनेके लिए नदी |
जारां चर्पासि मालगुजारीपर चाददाइका न्यायोचित अधिकार माना जाता था |
चड़े-बड़े घर्मभीरु और नेंतिक लोग भी स्वीकार करते थे कि यह तो राजाका जंदा है, उसे
वद्द चाहे. जेते खर्च करे । किसानोंका भी यष्टी दृष्टिकोण था। इस अधिकारके बदलेमें
राजाका क्या कत्तव्य है, यह प्रदन ही नहीं उठता था । जो बादयाद गालगजारीकी दर न
वट्ता, किसानाको जिसके नौकर परे्ान न करते ओर जां गावकै जीवनमें हस्तक्षेप न होने
देता; उसे दी जनता अच्छा यास्क मानती थी । किसान लोग बस उतनी दही उपलकौ
अपना दक मानते जो माठ्गुजारीसे वच र्दती । युद्धमें विजयी राजा विजित राजासे जो
जुर्माना; चीथ आदि वसूल करता था. वद्द किसानोंकी गाढ़ी कमाईसे दी आता ।
५, जान पिकरटन : पृ जनरर कलेक्यन घाव दि बेस्ट ऐंण्ट मोस्ट दण्टरेरिंटंग वायजेज,
पू० २२१, ४१५ (१८११) ।
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