भारतीय राजनीति -विक्टोरिया से नेहरु तक | Bhartiya Rajneeti Victoria se Nehru Tak

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Bhartiya Rajneeti Victoria se Nehru Tak by श्री रामगोपाल -Shri Ramgopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ भारतीय राजनीति जाजं । इसीके आसपास एक व्यापारिक केन्द्र वन गया और बादमें यही वेन्द्र मद्रासके नामसे मद्याहूर हुआ | थाहजहाँकी चादयाहतके जमानेमें हुगलीमें और उसके आसपास पुर्तगालियोंके उत्पात और जत्याचार एकएम बढ़ गये । बाददाइने बंगालके सेदास्कों पुर्तगालियींको सजा देनेका आदेश दिया । याददी फीजने हुगलीको घेर लिया । पुर्तगाली मारे गये, पद हुए और हुगलीसे उनका नाम निशानतक मिट गया । जंशेजोंनि इनकी जगह बंगाल व्यापार करनेकी अनुमति माँगी ओर प्राप्त भी कर ली । लेकिन उन्हें भारी कर देने ओर हुगलीतक अपने जद्दाज न लानेकी दार्त गाननी पड़ी । तमी अग्रेजाके सौगाग्यसे यादटजर्टोकी पुत्री वीमार पड़ी । यादव उन दिनों जपनी बेटीके साथ दक्षिणमें ही था । चजीरने सूरतसे एक अंग्रेज डाक्टर बरौटनको बुल्मया जिसने बाइजादौका इलाज चर उसे चंगा वर दिया । शादजहाँने डावटरको मुँहगों गा नाग देनेका वादा किया । उसने देदभक्तिकी एक बहुत ऊँची मिसाल पेदा चरते हुए कहां कि अंग्रे जकि बंगाल बिना कर दिये व्यापार करने और कारखाने खोलनेकी इजाजत दी जाये । डावटरको लाटी पर्मान मिल गया जिसे लेकर वह घाहजहाँके बेटे घाइडजाके, जो उन दिनों बंगाल सूवेदार था, दुरवारमें पहुँचा । उन्दीं दिनों झुजाकें टरममें एक मटिला बहुत यादा बीमार थी । डाक्टर चीटनने उसे भी चंगा कर दिया जोर शादद्युजाने कृतशतापृवल्रक दक्टिरको र सम्भव सहायता वंगाल्मे स्थायी रूपसे अंग्रेजी व्यापारप्रमुत्व कायम करनेके लिए, दी | जद्दॉगीरके दरयारमें आये ब्रिटिद्य राजदूत सर टामस रोने सन्‌ १६१६ में लिखा था--- “यर्दा १०० से अधिक जातिर्यो और धर्मद, पर वे अपने सिद्धान्तो या पूजाचिधयिपर गर्ते नर्द । दर एकको अपने टं गते अपने ईश्वरकी आराधना करनेकी पूरी छूट है । घर्गके कारण सताया जाना यहाँ जजात है ।”?' सारी बासनसत्ता मुगल बादयादोमे केन्द्रित थी । उनका कथन ही कान था और वादशादका विरोध अधिक सवल दृथियार दी कर सकते थे । यासनकाममं ये अमीरोंसे मदद लेते थे । ता थादजहीका राज्य जनताके लिए. बड़ा समृद्धिगाली बताया जाता है । माछगुजारी चादयाइकी आमदनीका मुख्य खोत थी । यदह यादी खर्च॑कै लिए काम आती थी; जनताके दितमें, उसे सुचिघाएँ देनेके लिए नदी | जारां चर्पासि मालगुजारीपर चाददाइका न्यायोचित अधिकार माना जाता था | चड़े-बड़े घर्मभीरु और नेंतिक लोग भी स्वीकार करते थे कि यह तो राजाका जंदा है, उसे वद्द चाहे. जेते खर्च करे । किसानोंका भी यष्टी दृष्टिकोण था। इस अधिकारके बदलेमें राजाका क्या कत्तव्य है, यह प्रदन ही नहीं उठता था । जो बादयाद गालगजारीकी दर न वट्ता, किसानाको जिसके नौकर परे्ान न करते ओर जां गावकै जीवनमें हस्तक्षेप न होने देता; उसे दी जनता अच्छा यास्क मानती थी । किसान लोग बस उतनी दही उपलकौ अपना दक मानते जो माठ्गुजारीसे वच र्‌दती । युद्धमें विजयी राजा विजित राजासे जो जुर्माना; चीथ आदि वसूल करता था. वद्द किसानोंकी गाढ़ी कमाईसे दी आता । ५, जान पिकरटन : पृ जनरर कलेक्यन घाव दि बेस्ट ऐंण्ट मोस्ट दण्टरेरिंटंग वायजेज, पू० २२१, ४१५ (१८११) ।




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