प्रेमचंद रचनावली 15 | Premchand Rachanavali Vol. 15
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36.35 MB
कुल पष्ठ :
474
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चमत्कार 15 बाबू भला चोरी करने वाला अपने आप कबूलेगा । तुम मारपीट भी तो नहीं करते । हाँ पुलिस में रिपोर्ट करना मुझे भी फजूल मालूम होता है। माल बरामद होने से रहा उलटे महीनों की परेशानी हो जायेगी । प्रकाश-लेकिन कुछ-न-कुछ तो करना ही पड़ेगा। ठाकुर-कोई लाभ नहीं । हाँ अगर कोई खुफिया पुलिस हो जो चुपके-चुपके पता लगावे तो अलबत्ता माल निकल आये लेकिन यहाँ ऐसी पुलिस कहाँ ? तकदीर ठोंककर बैठ रहो और क्या । प्रकाश-आप बैठ रहिए लेकिन मैं बैठने वाला नहीं । मैं इन्हीं नौकरों के सामने चोर का नाम निकलवाऊँगा ? ठाकुराइन-नौकरों पर मुझे पूरा विश्वास है। किसी का नाम निकल भी आये तो मुझे सन्देह ही रहेगा। किसी बाहर के आदमी का काम है। चाहे जिधर से आया हो पर चोर आया बाहर से । तुम्हारे कोठे से भी तो आ सकता है। ठाकुर-हाँ जरा अपने कोठे पर तो देखो शायद कुछ निशान मिले । कल दरवाजा तो खुला नहीं रह गया ? एरगाण का दिल धड़कने लगा। बोला-मैं तो दस बजे द्वार बन्द कर लेता हैं। हाँ कोई पहले से मौका पाकर कोठे पर चला गया हो और वहाँ छिपा बैठा रहा हो तो बात दूसरी है। तीनों आदमी छत पर गये तो बीच की मुँडेर पर किसी के पाँव की रगड़ के निशान दिखाई दिये । जहाँ पर प्रकाश का पाँव पड़ा था यहाँ का चूना लग जाने के कारण छत पर पाँव का निशान पड़ गया था । प्रकाश की छत पर जाकर मुँड़ेर की दूसरी तरफ देखा तो वैसे ही निशान वहाँ भी दिखाई दिये। ठाकुर साहब सिर झुकाये खड़े थे संकोच के मारे कुछ कह न सकते थे । प्रकाश ने उनके मन की बात खोल दी-इससे तो स्पष्ट होता है कि चोर मेरे ही घर में से आया । अब तो कोई सन्देह ही नहीं रहा। ठाकुर साहब ने कहा-हाँ मैं भी यही समझता हूँ लेकिन इतना पता लग जाने से ही क्या हुआ। माल तो जाना था सो गया। अब चलो आराम से बैठें आज रुपये की कोई फिक्र करनी होगी। प्रकाश-मैं आज ही वह घर छोड़ दूँगा । ठाकुर-क्यों इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं । प्रकाश-आप कहें लेकिन मैं समझता हूँ मेरे सिर बड़ा भारी अपराध लग गया। मेरा दरवाजा नौ-दस बजे तक खुला ही रहता है। चोर ने रास्ता देख लिया। संभव है दो-चार दिन में फिर आ घुसे । घर में अकेली एक औरत सारे घर की निगरानी नहीं कर सकती । इधर वह तो रसोई में बेठी है उधर कोई आदमी चुपके से ऊपर चढ़ जाय तो जरा भी आहट नहीं मिल सकती । मैं घूम-घामकर कभी नौ बजे आया कभी दस बजे । और शादी के दिनों में तो देर होती ही रहेगी । उधर का रास्ता बन्द हो जाना चाहिए। मैं तो समझता हूँ इस चोरी की सारी जिम्मेदारी मेरे सिर है। ठाकुराइन डरीं-तुम चले जाओगे भैया तब तो घर और फाड़ खायगा। प्रकाश-कुछ भी हो माताजी मुझे बहुत जल्द घर छोड़ना ही पड़ेगा । मेरी गफलत से
User Reviews
No Reviews | Add Yours...