भारतेंदु - युग | Bharatenduyug
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.433 GB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( ३ )
कुछ दूसरे मित्र “राष्ट्रीयता” और “जनवाद'” शब्दों र चौंक कर
इन्हें राजनीतिक ही नहीं, कम्युनिस्ट भी घोषित कर देते हैं और दावा
करते हैं कि यह सत्र पुराने साहित्य पर माक्संवाद और कम्युनिज्म
आरोपित करने की कोशिश दै
ऐसे मित्र न तो मार्क्सवाद समभते हैं, न भारतेन्दु-युग को ।
माक्संवाद मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी दर्शन है, वह समाज को
बदलने का वेज्ञानिक साधन है । उसके अनुसार मजदूर वर्ग समाज का
सबसे क्रान्तिकारी वर्ग है और वह दूसरे वर्गो के साथ मिल कर--
सबके पहले किसानों के साथ मिल कर समाज को बदलने की सामथ्यं
रखता है । मजदूर वगं की क्रान्तिकारी भूमिका के विना, समाज के
विभिन्न वर्गों की अपनी विशिष्ट भूमिका समभे बिना कोई माक्संवादी
होने का दावा कैसे कर सकता है ? इस एक तथ्य को ही लें तो स्पष्ट
हो जायगा कि भारतेन्दु-युग के साहित्य पर माक्संवाद् का आरोप करने
का प्रश्न नही उठता । जो लोग अग्र जी राज के विरोध को ही कम्युनिज्म
सममभते हैं, वे साम्राज्यवादी प्रचारकों की तरह हैं जो कम्युनिज्म का
भय दिखाकर स्वाधीनता-आन्दोललन का दी विरोध करते हैं । इसके सिवा
माक्संवाद साम्राज्यवाद का सुसंगत विरोधी हे । उसके लिये वे असंग-
तियाँ असंभव हैं जो भारतेन्दु-युग के साहित्य में मिलती हैं ।
रूदिवादियों के मित्र कुछ अति-प्रगतिवादी विद्वान् हैं जो भारत में
अँग्रेज़ी राज की क्रान्तिकारी भूमिका मानते हैं. और इसलिये उसके
विरोध को प्रतिक्रियावाद ! ऑअँग्रज् भारत को लूटने के बदले, इन
विद्वानों के लिये, यहोँ एक सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक
जागरण के दूत बन कर आये थे; इसलिये भारतेन्दु-युग में जो नयी
चेतना मिलती है, उसे भी अग्रजं की देन समना चाहिए ! रूढ़िवादी
श्नौर अति-प्रगतिवादी दोनों ही तरह के विद्धान् भारतेन्दु-युग की अपनी
विरासत अस्वीकार करते हैं, यहाँ की जनता के सांस्कृतिक विकास के
प्रति अन्याय करते है ।
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