बुद्ध - चरित | Buddha - Charit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) पंजावी का पुराना रूप, जैसे, टपका लागा पएूटिया कटु नहिं ाया हाथ--कवीर । आघु० पंजाबी भर्‌या, खड़ी और अवधी भरा ) 'दिन्हाः = दिया, वृहा = दिलाया, व्यूहित किया, कया = किया ( खड़ी और अवधी के रूप )। दिन्लु « दिया ( झवधी “दीन” का पूर्व रूप ); पयट्ठु > पैठा ( अवधी 'पैठ' ); लग्ग, = लगा (अवधी 'लाग” का पूवे रूप)। संबंधकारक सबेनाम “कसु कर = ( खड़ी० किस का; अवधी केहि कर )। कमेचिह- श्राणकई* ( अवधी श्राण केः = प्राण को ) । ये उदाहरण विक्रम की १२वीं, १३वीं और १४वीं शताब्दी में बने प्रंथों से लिए गए है पर इनमें से अधिकतर संगृहीत हैँ और संग्रहकाल से वहुत पहले के हैं। कुछ तो संज और भोज के समय (सं० १०३६) के हैं। इस प्रकार हिन्दी की काव्यभापा के पूवै रूप का पता विक्रम की ११वीं शताब्दी से लगता है । जैसा पदतले कहा जा चुका दै यपि इस भाषा ` का ढाँचा पच्छिमी (ब्रज का सा) था पर यह साहित्य की एक व्यापक भापा हो गई थी। इस व्यापकता के कारण और प्रदेशों के शब्द और रूप भी इसके भीतर श्रा गए थे। ऊपर उद्धृत कविताएँ टकसाली भाषा की हैं और प्रायः पछाहूँ के चारणों और कवियों की रची हैं इससे उनमें पंजाबी 'और अवधी दी तकं के रूप मिलते है! पर श्राञ्त पिंगलसूत्र' में और पीछे के काल लक की ( हस्सीर कै समय तक की) तथा श्रौर पूरवी प्रदेशों की कविताओं के नमूने भी




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