आधुनिक हिन्दी कविता में विषय और शैली | Adhunik Hindi Kavita Men Vishay Aur Shaili

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Adhunik Hindi Kavita Men Vishay Aur Shaili by रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य, शिव गौर सुन्दर १६ रम-सम्प्रदाय का जन्म सामत-काल के विकासशील युग में हुमा था, भरत दास-प्रया के श्रागे होने के कारण उसमें समाज का कल्याण करने की शवित थी । परन्तु सामन्त-काल के गतिरोवों श्रौर उच्चवर्गीय प्रभुत्व ने काव्य को, रम के विरोध मे ध्वनि, रीति आदि के जाल में, प्रमिजात्य वचनों में बाथने को चेष्टा की, और यद्यपि वे समाज को उतना पीछे तो नहीं हटा सके कि *रम' की प्रगति को भुठा दे, परन्तु उन्होंने काव्य के दाह परिवेष्टन श्रवश्य दुरूह वना दिए । आधुनिक काल के यूरोपीयवाद मध्यवर्गीय टुटपूजियों की वर्ग-व्यवस्था मे से जन्म ले सके हैं । उनमें झ्राघुनिकता का फैशन है, खरौर पे भूनतत सामतीय काव्यशास्व के आंगे नहीं ले जाते, वल्कि यो कहना उचित होगा कि सामतीय काव्यशाह्व जहा श्रपने दायरों के भीतर पूर्ण है, वहा ये श्रावुनिकवाद्‌ उतने भी पूणं नही है । आचारय रामचद्र शक्न ने इन्दे “व्यविन-वैचिव्यवाद' मे रखा था, किन्तु थे तो उतने मे ही समाप्त नहीं हो जाने । छस वेश में ये 'रस' का पतला पकड़ने है । भ्रौर यह इनक्रा मवसे वडा खोखलापन है, बयोकि सौन्दर्य के ग्रनिर्व चनीय निरपेक्ष ्रानस्द की उच्च भावभुमि को तमी रम-सम्परदाय में उच्चतर समझा गया है, जब उसमें साधारणीकरण का माध्यम स्वीकार कर लिया गया हैँ । यौन प्रवृत्तिया जो 'हाल' से चली रातौ हँ भौर पूरे रीतिकाल मे सामतीय न्धनोमे र्दी, पेटी इन मये वादोमे नपे रूप लेकर उठ खड़ी हुई हैं। इन समस्त श्रपरिपक्वताश्रो ने साहित्य पर घातक प्रह्वार क्या है । यहा कवित्व को न देखकर, उसकी कविता को न देखकर, कविमात्र को ही देखा जाता रहा है) रहस्यवादियों द्वारा समादून कविकुसगुरु रवीत्द्रनाथ ठाकुर ही ग्रनजाने मे श्रचला- यतन' लिख गए थे, जहा उन्होंने जीवन के कठोर सत्यों का वर्णन करते हए सशस्व विद्रोह न्यायो चित बताया था । रोक्मपियर दरवार -पुगीन कवि था, किन्तु उसकी रवनाभ्रो मे मध्यवर्ग की उठती चेनना का प्रतीक दिलाई देता है। ताल्नवाय ईनाई रद्सावादी या, परु लेनिन ने उमे त्राति का दर्पण कहा है । प्रमवन्द श्रहिसावादौ था, वषाद उसमे समन्वयवाद का स्थान लेता है, किन्तु उसने किसानों की चेतना को उठाया और राष्ट्रीय आदोलन को झागे बढाया । झाज भी ववियों को दाणी को देखने को सबसे बडी म्रावश्यकता है, न कि उनके याह्वन्यनो, गुट, पायो, भ्रादि को ही देलकर उन्हें छोड़ दिया जाए । आगे आपको इसके ग्रनेक उदाहरण मिलेंगे, कि श्ररे, यह्‌ इमी व्यक्ति ने लिला है!” ऐमे वाक्य तक झापके मुख से निकल जाएगे। [५] हमे एक भोर काव्य को वाद, व्यक्ति, देश, काल ग्रौर वर्ग भूमि के ऊपर उठ- है. दासिए, 'प्रगतिशल साहित्य के मानइण्ड', ले० रागेय रायव




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