ऐसा भी क्या जीना | Aisa Bhi Kya Jeena
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चरिता प्
स्वयंत्रेवकों की ( जर्यात् हमारी ) पलट्त थी, दूसरी संयुक्त राज्य की पेदल
सेना की आधी पलटन मोर एक थी--इंजीनियरों की छोटी-सी टुकड़ी ।
हम रवाना हुए । 'चीन' और 'सिनेटर' दोनों जहाज साथ-ताव चलने
लगे । उनका मुँह पदिचिम की तरफ था । उनके इंजिनों की घरपराहट मुझे
ऐसी माठूम हो रही थी, मानों मेरे पैरों की नाड़ी वोल रही हो ।
“अरे जमीन पर चलनेवाले, यह चला तू । नव कई दिनों तक जमीन पर कदम
नहीं रख सकेगा ।--इंजिन का भोपू सारे जहाज को मानों कंपित कर रहा था 1
फिर तो वन्दरगाह के सभी जहाज द्यामिल हो गये । चार हजार सिंपाहियों को
लेकर काफला मनीला के मार्ग पर था। “कलोन' भौर 'झीलांडिया' जहाज
हमारे पीछे-पीछे निकल पड़े । हम गोल्डन गेट ( स्वर्ण-दार ) की तरफ चले ।
एक घण्टे वाद तो दूसरे जहाजों की ओर देखने की भी मुझे फुरसत नहीं
रही । हमारे साथ नौकर-सिपाहियों का एक छोटा-सा नायक था । लादमी
घमण्डी था । ऐसा रूग रहा था, मानो इस लड़ाई में मुझे सदा तंग करते रहने का
ही उसने निव्चय कर लिया हो 1
किन्तु अमेरिका के स्वतन्त्रता-दिवस ( ४ जुलाई ) तक हम एक दूसरे से
खुलकर मिल नहीं पायें थे । उस दिन हमें रोज के कार्यक्रम से छुट्टी मिली ।
यह भूल तो नहीं कहीं जा सकती थी । कितनी ही खानगी दुदमनियाँ पक गयी थीं
भोर फूट पड़ने का मानों मृहूर्त ही देख रही थीं । वॉव ओर में जहाज के पिछले
हिस्से के एक एकान्त कोने में कठघरे पर झुककर खड़े थे । दोनों को घर की
याद आ रही थी । दयायद यह वात हमारे चेहरों से भी प्रकट हो रही थी !
“माँ की याद आ रही हैं वच्चाजी £””
मैंने ऊपर देखा । वह नायक कमर पर दोनों हाथ रखे खड़ा-खड़ा दाँत
निपोर रहा था । इस मसखरी को अधिक सहन करने जितना घीरज मुझमें नहीं
रहा । मैंने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दो। परन्तु उसने इतनी तेजी से मुंह फेर
लिया कि मेरा हाय उसे सिर्फ छूता हुआ निकल गया । मेरे वाँये गाल पर उतने
इतनी जोर से चाँटा मारा कि मुझे तो तारे दीखने लग गये । लड़ाई शुरू हो गयी ।
नौकरी करनेवाले चिपाहियों में कितने ही छोकरे वहुत तीखे होते हैं । सौभाग्य
से मैं भी मुक्केवाजी की कुछ तालीम ले चुका था 1 हम दोनों मिड़ गये ।
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