ऐसा भी क्या जीना | Aisa Bhi Kya Jeena

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Aisa Bhi Kya Jeena by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चरिता प्‌ स्वयंत्रेवकों की ( जर्यात्‌ हमारी ) पलट्त थी, दूसरी संयुक्त राज्य की पेदल सेना की आधी पलटन मोर एक थी--इंजीनियरों की छोटी-सी टुकड़ी । हम रवाना हुए । 'चीन' और 'सिनेटर' दोनों जहाज साथ-ताव चलने लगे । उनका मुँह पदिचिम की तरफ था । उनके इंजिनों की घरपराहट मुझे ऐसी माठूम हो रही थी, मानों मेरे पैरों की नाड़ी वोल रही हो । “अरे जमीन पर चलनेवाले, यह चला तू । नव कई दिनों तक जमीन पर कदम नहीं रख सकेगा ।--इंजिन का भोपू सारे जहाज को मानों कंपित कर रहा था 1 फिर तो वन्दरगाह के सभी जहाज द्यामिल हो गये । चार हजार सिंपाहियों को लेकर काफला मनीला के मार्ग पर था। “कलोन' भौर 'झीलांडिया' जहाज हमारे पीछे-पीछे निकल पड़े । हम गोल्डन गेट ( स्वर्ण-दार ) की तरफ चले । एक घण्टे वाद तो दूसरे जहाजों की ओर देखने की भी मुझे फुरसत नहीं रही । हमारे साथ नौकर-सिपाहियों का एक छोटा-सा नायक था । लादमी घमण्डी था । ऐसा रूग रहा था, मानो इस लड़ाई में मुझे सदा तंग करते रहने का ही उसने निव्चय कर लिया हो 1 किन्तु अमेरिका के स्वतन्त्रता-दिवस ( ४ जुलाई ) तक हम एक दूसरे से खुलकर मिल नहीं पायें थे । उस दिन हमें रोज के कार्यक्रम से छुट्टी मिली । यह भूल तो नहीं कहीं जा सकती थी । कितनी ही खानगी दुदमनियाँ पक गयी थीं भोर फूट पड़ने का मानों मृहूर्त ही देख रही थीं । वॉव ओर में जहाज के पिछले हिस्से के एक एकान्त कोने में कठघरे पर झुककर खड़े थे । दोनों को घर की याद आ रही थी । दयायद यह वात हमारे चेहरों से भी प्रकट हो रही थी ! “माँ की याद आ रही हैं वच्चाजी £”” मैंने ऊपर देखा । वह नायक कमर पर दोनों हाथ रखे खड़ा-खड़ा दाँत निपोर रहा था । इस मसखरी को अधिक सहन करने जितना घीरज मुझमें नहीं रहा । मैंने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दो। परन्तु उसने इतनी तेजी से मुंह फेर लिया कि मेरा हाय उसे सिर्फ छूता हुआ निकल गया । मेरे वाँये गाल पर उतने इतनी जोर से चाँटा मारा कि मुझे तो तारे दीखने लग गये । लड़ाई शुरू हो गयी । नौकरी करनेवाले चिपाहियों में कितने ही छोकरे वहुत तीखे होते हैं । सौभाग्य से मैं भी मुक्केवाजी की कुछ तालीम ले चुका था 1 हम दोनों मिड़ गये ।




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