अबरक के फूल | Abrak Ke Phool

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Book Image : अबरक के फूल  - Abrak Ke Phool

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहता है। ६ वीच-बीच मे पूत है, तुम वेता नुद नल म चुपचाप अपने आपम डवा नियति भेतता रहता ह 6६६ डे वह्‌ कहती है, “बस, ब्रव व द करो न मेरे हाथ तेज़ हो जाते हैं । आखिर वह कहती है, “वहुत ऊची हो गई हु । मुझे डर लगन लगा है । देखो, चारा तरफ श्रीवाश ही श्रावाश ह।' मैं मन ही मन कहता हू हजारो साल स घूमती कहानी को पल भर मक्सेरोक्द्‌ श्रौरझब तो हार पैर मशीन के पुरजा वी तरह घूमने लगे हैं ।उ हू रोष पा मेरे दस की वात नहीं है । अब तो यह प्रफिया मेरे दूटने के साथ ही टूटेगी ।” मैं घोरे धीर मर रहा हु हाथ णर शियिल हा गए हैं. उसका सी दय अब मौत के सो दय में लीन हो गया हू पर मच ऊपर उठ रहा है मैं उस रेखा तक पहुचन के लिए रेंग रहा हू जहा श्रस्तित्व श्रौर '्रनस्तित्व का भेद मिट जाता है. और सुनो, श्राखिरी वात । प्रेम दूसरे की हत्या करने को कहते है फक सिफ इतना हो हू वि प्रेम में श्रादमी सिफ उसे मारता है, जिसमें वह श्रपन अस्तित्व की परछाई साफ साफ दंखता है। जिसवी झावाज़ को भ्रपनी श्रावाज मानता ट्‌ श्रौर जिमकौ ऊचाई को झ्पनी नीचाई का पूरब मानता है। मैंने तुम्ह बताया था न. रोशनी नहीं मरती कसी न किसो ऊचाई पर हमेशा जिदा रहती हूँ




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