एशिया में प्रभात | Eshia Men Prabhat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १द |
ग्रजातंत्र वास्तव में सच्चा, लाभदायक शरीर पवित्रहै था नके;
'प्रजातंत्र' का अर्थ तो यददी है न कि किसी देश में मनुष्य वहाँ के:
समाज पर मनसानी न करने पावे ? परंतु साथ दी यह भी.
सोचना उतना दी श्ावश्यक है कि एक मनुष्य की तरद दु
भक्ति के नेक मनुष्य, अपने निजी स्वार्थों की रक्षा करने के
लिये, जन-साधारण को चकमा देकर, उनके स्वत्नो को जार या
क़रैसर से भी झणधिकसर भयंकरता के साथ न कुचल डालें । क्या
कई देशों के भालदार और स्त्रार्थी आदमी वहाँ की राष्ट्र-सभाओं
में घुसकर प्रजात॑त्र की धूल नहीं उड़ा रहे हैं ? अमेरिका के
प्रजातंत्र में कई ऐसे दोष उपस्थित हो गए हैं, जिनफे कारण
वहाँ भी वास्तविक स्वतंत्रता छुप्माय-सी हो गई है । सचा और
वास्तविक प्रजासंत्र तो वह है, जिसमें छोटे शौर बड़े अपने
निजी लाभों की पूर्ति की चेष्टा को त्यागकर समान लाभ, समान:
प्रतिष्ठा और समान प्रेम के भाव में रत हो जायें । जापान को
इसी श्रकार की स्वाथंशून्य एवं ज्गदुपकारिणी प्रज़ातंत्र-सम्यता
का मिमाण करना 'वादिए; ताकि बड़े लोग छोटों की और छाटे
लोग बड़ों की चिंता करें, 'और 'छापस की युक्षा-पजी्त करते
तथा एक दुसरे के यह का कौर छीनने कै लिये वलबेदी न करं ।
यदी जापात का धार्मिक फतेष्य और व्यावहारिक वपदेश तथा,
सजना संदेश होना चाषिष्य ।
एशिया के मिंन्न-सिन्न भागों में कुछ ऐसे महासना, उदार
स्वभाव और देनोपम मनुष्य उत्पन्न हो चुके हैं, घौर भविष्य में
भी अधिकतर संख्या में होंगे, को श्स्तुतः इश्वर के सारात्
अवतार ही होंगे । वे समस्त एशिया को सभी स्वतंत्रता, सथी
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