कुब्जा सुंदरी और दूसरी कहानियां | Kubja Sundari Aur Doosari Kahaniya
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य - Chakravarti Rajgopalacharya
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श्री शान्ति भटनागर - Shri Shanti Bhatnagar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ज
____ -----------------~~ ५ वः
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एक दिन पक्जां ने अचानक कहा--''अद्ध॑नारी / में तुम्हारी मा से
मिलना चाहती हूँ । हमने तय किया है कि तुम एक हफ्ते की छट्टी लेलो
और हमारे साथ कोयमुत्तूर, उटाकमन्ड और दूसरे स्थानो की सैर करने
चलो । तुम्हारी क्या राय है ?”
गोविन्द राव ने भी कहा--'आजकल दफरर में काम ज्यादा नहीं
है । अगले महीने के पहले हफ्ते मे चलना सवके लिए ठीक रहेगा ।”'
अद्ध॑नारी का हृदय घडकने लगा । उसने कहा-- “हाँ, हाँ, हम ऐसा
कर सकते है, लेकिन मेरे पास आज हो घर से चिट्ठी आई हैं जिसमें
लिखा है कि गाँव में बडे ज़ोरो से हैज़ा फंउ रहा हे ।'
यह सुनकर पकजा को वहत चिन्ता हुई । “हैजा 1 उस्न चवरा-
हट के साथ कहा ] “क्या तुमने अपने सम्बन्धियो को वर्हा से दूसरी जगह
जाने को लिख दिया हू * उन्दे यही आनं को क्यो नही लिख देते ?”
मै मभी-अभी यही लिखने को सोच रहा था,” अद्धभनारी *
उत्तर दिया ।
तीन दिन बाद अद्ध॑नारी को रग का एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था-
छोटे भाई मरद्धनारी को आशीर्वाद !
यहाँ बडे ज़ोरो से हेज़ा फेल रहा हैं। बहुत-से छोग मर चुके हैं
और हमे भी घबराहट हो रही है । पिता जी का पहले ही जैसा हाल
है, वह हमारी सलाह नही मानते । इस महीने तुमने जो रुपया भेजा था
वह सब खतम हो चुका है। हम मोच रहे हें कि अगर तुम ३०) और
सेज सको तो हम मकान में ताला डालकर जव तक दे का खतरा
दूर न हो जाय तब तक के लिए सेम चके जाये।
तुम्हारा सस्नेह,
रग ॥ 2
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