राजस्थानी कहावतें एक अध्ययन | Rajasthai Khawate Yak Adyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहादत का पर्यालोचन य साहित्य की दृष्टि से भी कहावतों का महत्त्व कम नहीं । कहावतें भाषा का श्य गार हैं, उनके प्रयोग से भाषा में सजीवता श्ौर स्फूति का सचार हो जाता है । विशेषत्त उपन्यास श्रौर कहानियों में तो लोकोक्तियों का होना एक प्रकार से श्रनिवायं हो उठता है। स्व ० प्रेमचन्दजी की रचनाओ मे जो कहावतो की वहार दिखलाई पड़ती है, उससे उनके द्वारा लगाया हुम्रा साहित्योपवन श्रत्यन्त हरा-भरा श्रौर सजीव दिखाई पडता है 1 लोकोक्तिथो के यथास्थान प्रयोग से उन्होंने भाषा में जादू भर दिया है । एक भ्ररवी कहावत के अ्रनुसार वाणी में कहावत का वहीं स्थान है जो भोजन में नमक का है। भापषा-विज्ञान के श्रध्येता के लिए भी कहावतें श्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । वोल- चाल भ्रयवा साहित्य में प्रयुक्त होने वाले बहुत से शब्द समय पाकर झप्रचलित हो जाते हैं किन्तु कहावतो में इस प्रकार के शब्द सुरक्षित रह जाते हैं । डढा० वासुदेव शरण ध्ग्रवाल प्रत्येफ कहावत का भापा-विज्ञान की दृष्टि से श्रध्ययन श्रावश्यक समभते है 1 उन्होंने दिखलाया है कि बैल के लिए “पोठ्यो” शब्द स ० प्रोप्ठ का सुचक हे जो राजस्वानी भापामे व्च गया है । हिन्दी की श्रन्य वोलियो में वह श्रप्रयुवत है । यह भी वैदिक युग का शब्द है--प्रोष्ठपद श्रर्थात्‌ प्रोष्ठ के पैर के श्राकार वाला । यह एक नक्षत्र का मदाहूर नाम था 1५ कहावतो के अध्ययन का महत्त्व अव प्रतिदिन बढता जा रहा है। लोगो को श्रव षन तथ्य की प्रतीति होने लगी है कि जिस प्रकार पुराने सिकको श्रौर शिलालेखों का श्रन्वेपण किया जाता है, उसी प्रकार कहावतो के क्षेत्र में भी श्रनुसधान ग्रौर भ्रध्ययन किये जाने की भावश्यकता है 1 सिक्को भौर शिललेखो कातो राजानो श्रौर श्रभिजात-वर्ग मे सम्बन्ध है किन्नु कहावतोके दारा सामाजिक जीवन, पुराने रीति- रिवाज, नृवश-विद्या श्रादि सभी पर प्रकाश पडता है। कहावतें वे श्रालोक-दीय है जिनकी सहायता से श्रन्थकारपूर्ण श्रतीत भी चमक उठता है। भारतवर्ष के श्रनेक स्थानों में पर्दा-प्रधा के कारण स्त्रियों के अन्त पुर मे प्रवेश निपिद्ध है, किन्तु कहावती दुनिया मे कही कोद पर्दा नहीं । स्त्रियाँ परदेशियो के सामने भी प्रपना हृदय खोलकर रख देती हैं । धनेक कहावतें तो स्थियो द्वारा ही निर्मित होती हैं ।* “जाति-विज्ञान घोर सरकृति के विद्वानों का कवन है कि जनता की चिचार- थार जनकयाप्रो, कहावतो प्रौर महावरो श्रादिमे व्यक्त होती है । यह वात सोलहों थाने सही है । दहावतें घोर मुह्दावरे श्रमिक-जनता वी सम्पूर्ण सामाजिक श्रौर एेति- रानिक भ्रनुमूतियो के चक्षिप्न रुप हैं। लेस्वक के लिए इस नामग्री का श्रष्ययन करना भ्रावदयक हे । *”. मेने कहावतो श्रौरमुहावरो यादि से वहत कु सीखा है 1 --गोर्कौ १. भूमिति भेवाष्को स्दपर), पष्ट १२२, ३) सिटवित्ट ७ हव्या एत्छ ल कपे पणा #$ १८. 1,०08, 128८




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