आज का धर्म | Aaj Ka Dharm

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Aaja Ka Dharm by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रभी सब कुछ सोचना बाकी १७ श्मपने सिद्धान्त दी उसके खड़े आ गये 1 महात्मा नवतन यानी न्यूटन का सिद्धान्त साफ़ कद्‌ बैठा, आादसी किसी तरह नहीं उड़ सकता । पर आज वह इस तरह उड़ रहा है. कि उड़नेवाले पत्ती उससे डाह कर सकते हैं । आदमी ने सोचा; शीशे को मुड़ना चाहिए, उसमे लचक होनी चाहिए । आज लचकदार शीशा बाजार में सौजूद है । भादमी ने चाहा कि आग ठंढी होनी चाहिए; तो उसके लिए कोशिश हो रही है। जल्दी दी ठंढी झाग बाजारू चीज बन जायगी । जब आविष्कारों का यह दाल है; तब दाशंनिक विचारों का क्या हाल होगा; इसका श्न्दाजा आप लगा सकते हैं। असल में दोता यद्द है कि आदमी का ज्ञान जेसे-जेंसे बढ़ता है; चेसे-वेसे झजानकारी का तेत्र जानकारी के क्षेत्र से कई गुना बड़ा हो जाता है। आप किसी मूरख या मामूली आदमी से यह सवाल कीजिये कि भाई; तुम्हें कुछ पूछना या जानना है ? वह एकदस जवाब देगा कि मुझे कुछ नहीं पूछना; कुछ नहीं जानना । जिसका अथ हुआ “त सवज ह| उसी आदमी को छं दिनो के लिए पाठशाला मे छोड दिया जाय यर फिर वदी सवाल पूष्धा जाय, तो चह्‌ जवाब देगा; ष्टो) उसे दो-चार वाते जाननी है \ थोड़ा और पढ़ जाने पर उसके सवालों की तादाद पहले से कई गुना बढ़ जायगी । जेखे गूहार में रदकर जो 'अपने को सवंज्ञ समकता' था उसे जानने की कड़ी गा दी; बसे ही सच धर्मों के सर्वज्ञ अगर आज की खुली दुनिया से भा जायें; तो सवालों की कड़ी लगा दे। वे ऐसे सवाल पूछें; जिनके जवाब उस समय जिस सीमित संसार में वे फेंसे हुए थे, वह सीमित संसार अब उन्हें देखने को भी न सित्तेगा । उन दिनों के सवंज्ञ के लिए आज का मामूली खिलौना जानकारी का विपय वन जायगा । उनका वह




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