आनन्द प्रवचन [भाग २] | Anand Pravachan [Part 2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उप जाए सुमाधिए 1 ३ लिया हे सो जप ये सभी सापज ही दपि सव, साल निक्ष मत पेड हादपेया 1 सोझन्य्राधि इस दारीर मे सभ्य खवरव है किस्तू उसने विध युव यावय दयत पदो पनी शूल प्रयन, सयाम, सषस्या सौर जय रयना गरणी पर्सी है । योध वही रपि प्राप सार समता है जो चप, सास, साया, सो पा सोगन्प्रध दि पा मरेया तपम सरः (तिक द एप्‌ नया समन्त मानानिति सगरा परन्पदा्थों से दिशा हो रे दाने, सक्ति, तथं स्पे भय तो सयरपिना कद । जो प्राणी धपने थिधा, दल, पुद्धि प्न, उनि, गुद या प्रभुसा मे मय मे पृर् गने ऊट छि मि पाना मरे तयत उसी के जि है, जो रस सब शाउुओ था सुगायिसा करने से विर ननम्‌ जागम पता है । तथा मोह निदा कला देकर पी समय सीयन मा ष्य मी अपत्य शण प्ययं नौ रोवाता 1 चननयहास्मा भी लापरऐों नया वनो उपदेश देते है योर मोर तथा प्रमाद पी भान अना देने याली निता से रागामि मा प्रयदन गारसे हैं । पहने हनन ऊपे मत पयी जन ! ससार है सटयोयन, फाया रपी नगर में रहे फाम चोर है। जीव हैं चटाउ यापे नायफर पपत कियो, यणिमि है पाँच यां को सुतफ में सोर है । जन्ञानादिफ गुण श्प रतन ममोतल धम, ऊपे तो से जाय लूट मिप्या तम घोर है । तित्तोक फहत्त सद्गुय चोकीदार सीय -- धार रे ! घटाल ठ्पे मतों भर मोर है । बितना सुन्दर पथ है ? जिसप्रकार एक चौकीदार संदफ पर गश्त लगाता है तथा जिस घर के दरवाजे युले देखता है, फौरन उसके निवासियों को दरवाजे चन्द करने और सावधान रहने के लिये चेतावनी देता है, ठीक उसी प्रकार फाबिकुलशूपण मत श्रिलोकफषि जी म० जीव को जगाते है, उसे सचेत करते हैं । फहते हैं-- यरे पयिक 1 तू मोह्‌-निद्रामे द्म प्रकार वेभान होकर मतसो । देय राग, द्रोप, कपाय मद मादि अनेक चोर तेरे अन्तर्मानस के उुले द्वारो की ओर टक्टकी लगाए हुए है । अगर तू भसावधान रहा तो मौका पाते ही ये दुप्ट तेरा मात्मिक-घ़ चुरा ले जाएंगे और तू फ़िस पू जी के वल पर अपनी षस विराट-याप्रा को सम्पन्न फरेगा ?




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