चन्द्रप्रभ - चरित | Chandraprabh - Charit
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१३]
रायने स्वयं इस अन्थकी एक कर्णाटकी-वृत्ति वनाई थी । अतः
चामुण्डरायके समयमें ही नेमिचन्द्र हुए हैं, यह निर्विवाद है ।
चामुण्ठराय गंगवंशीय राजा राचमछ्के प्रधान मंत्री और सेनापति
थे । राचमछ्कके भाई रक्कस गंगराजने शक संवत ९०६ से ९२१
तक राज्य किया है और शायद रक्कस गंगराजके वाद ही राचमहको
सिंहासन मिला था । कनदीमापाके प्रसिद्ध केवि रने शक संवत्
९१५ मे “पुराणतिरक › नामक ग्रन्थी स्वना की है ओर उसने आपको
रक्कस गंगराजका आश्रित बतठाया है चामुण्डरायकी भी अपने पर
विशेष कपा रहनेका वह भिकर करता है । कर्णाटरककविचरितके कर्तानि
चामुण्डरायका जन्म शक् सवत् ९०० के लगभग वतलाया है । इन सच
वातो र॒क.संवत् ९०० के ठगमग चामुण्डरायका समय सिद्धं हेता
है ओर यही समय नेमिचन्द्र् सिद्धात्तचकवर्तीका भी समझना चाहिए ।
ऊपर यह कहा ही जा चुका है कि झुक संवत ९४७ में वादि-
राजने वीरनन्दिका उद्लेख किया है । अत एव इससे पहले शक संवत
९०० या विक्रम संवत् १०३५ के ठगमग वीरनन्दिका समय समझना
चाहिए । विकमकी ग्यारहवीं शताब्दिके प्रारंभे वे इस धरामण्डटको
सुशोभित करते थे ।
वीरनन्दि नामके अनेक विद्वान् हो गये हैं । एक वीरनन्दि ' आचार-
सार › नामक यत्याचारन्थके प्रणेता भी है; वृहदरवयसंगरहकी मूपिकामे
पं० जवाहराठजी शाखछ्रीने उन्हं ओर चन्द्रपरभकाव्यके कर्ताको एक ही .
बता दिया है; परन्तु यह श्रम है। वे मेघचन्द्र त्रेवियदेवके शिष्य ये
# चृद्द्रव्यसंग्रहकी भूमिकामें साहित्यशात्री पं» जवाहरलालजीने नेमिचन्दरका
सधय दाक संवद ६०० सिद्ध किया है; परन्तु उसमें जो प्रमाण दिये गये दें, वे
सब ऊँटपटंग हैं-उनमें कोई तथ्य नदीं `
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