आत्म मार्ग दर्शिका | Aatm Marg Darshika

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Aatm Marg Darshika by श्री लालचन्द जी महाराज - Shri Lalchand Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# थात्म मार्ग-दशिका ऊ {३ स्थन तथा श्रात्मा को पिचान्ने मे अं अपनी इदि का उपयोग नहीं करता है, दि तु दूसरों का सुख छान लेने में शरीर दूसरों को युक्पिवक व्यवस्थित रोति से डु'्प देने में दो श्रनी धुदधि का दुखपयोग कर शात्मदत्पा पर रद्दा हु। ध चतुराई:- रासार या इन्द्रियों के भोग रूप भूल मुनैया था इटजाल से निकलने मे तुरा का उपयोग न वरते हुए दुम्भी या य पटों यनकर उ मत्तता पूर्पक तासा रिक इद्रजाल में फसने थीर फसाने में दी ध्रपनी चलुराई या दुरुपयोग कर श्ारमनाश कर रद्दा है । ६ रूपरग-सोन्दुयः- सम धारणपर शास की शोभा यढ़ानें में मै अपने रुप रंग का उपयोग ले परतां श्रा ओग भोगनेमें पगले यन श्यात्मा +) गोमा घटाने में च्रणने सौतयतोदुच्प्योगक्परहाह। { ७ कुदटुम्ब-परिवारः- झाता पता, महं उदन, रनीं पुपर, शरीर धन, रमय, मवनश्रौर मिप्र हा सवगा उपयोग शरस्य कल्याणा के छिथ न परते षण मोद, श्रदद्ार शीर ममता वदने के नियेक्ररदाह) ८ यनः मोकतदप्यन चर्म ॐ श्रत्वरख मे यः वोत




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