श्रेणिकचरित्र | Shrenikcharitr

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Shrenikcharitr by पंडित पन्नलाल जैन - Pandit Pannalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ ; (3 ~ ४ श्रणकचारने । ¦ गध€€ 666 श्रीवरदधमानमा्दं मौ मि नानारुणाकरं | क ९ © $ विद्युद्धध्यानदीप्ताचिहुतकमेसमुच्चयं ॥ गु्ध्यानरूपी देदीप्यमान अम्नसे समस्तकमोकि समूह को जलानिवाढे, अनेकगुणोंक आकर आनंदके करनेवाढे श्रीवद्धमान स्वार्मीको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ? ॥ जिस भगवानने बाल्यअवस्थामें ही मुनियोंका संदेह दूर करनेसे श्रेष्ठ विद्वत्ताको पाकर सम्मतिनामकों घारण किया | जिस भगवानने वाल्य अवस्थामें हो मायामयी सर्पे मदन करनेसे महा ओरनाम ग्राप्त किया,और जो वाह्य अवत्थामें ही अत्यंत यको पाकर वीरो के चार कहठाये । जिसभगवानने मनुष्यठोकसंबंधी बड़े भारी राज्यको भी, जीर्णतृणके समान समझकर; छोड़. दिया एवं जो दीक्षा भारण कर समस्तरोकके वंदनीय हुये । तथा ओ महाबीर भगवान केवज्ञान केवलदररीनकों प्रकाशकर धर्मरूपी सपति




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